Thursday, July 8, 2010
खुदा की भूल हो गये...
ग़म बांट के हल्का करने की कोशिश की थी
चाहे अनचाहे कुछ ज़ख्म हरे हो गये
मेरा दर्द सुनने की ख्वाहिश थी उन्हें बहुत
किस्सा सुने बिना ही फिर परे हो गये
छेड दिया कोई तार ऐसे कि रात आंखों में कट गई
दर्द-औ-ग़म का मालूम नहीं मग़र ये खबर बंट गई
मेरी कमदिली के किस्से मशहूर हो गये
वो फेंक के पत्थर ठहरे पानी में कहीं मशगूल हो गये
चंद अल्फ़ाज़ों में मेरा ग़म ढूंढना है फिज़ूल
जो चर्चे थे कभी महफिल में, अब राह की धूल हो गये
जिन्हें किताबों में रख के छोड दिया हो
किताब पर भी बोझ, हम वो फूल हो गये
लाख चाह कर भी सुधरे ऐसी सूरत नहीं कोई
हम चांद में दाग जैसी खुदा की भूल हो गये
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मशगूल-busy
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खूबसूरत गज़ल...
ReplyDeleteजिन्हें किताबों में रख के छोड दिया हो
ReplyDeleteकिताब पर भी बोझ, हम वो फूल हो गए
वाह ! क्या बात है ....
ham chaand me daag jaisee khudaa ki bhul ho gaye.....vaah laajabaab.
ReplyDeleteबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteशेर अलग अलग हैं मगर कुछ एक बहुत खूब हैं ... बधाई
बेशक आपकी नज़्म बेहद खूबसूरत है!
ReplyDeleteऔर आपका प्रोफाइल भी..... गुस्ताखी माफ़, आप भी!
खुदा खैर करे! किसकी?
अगर तबस्सुम की लकीर आपके होठों पर खिंच गयी तो आपकी, अगर आपकी भोंहें तन गयीं, तो मेरी!
हा हा हा.....
मोनाली अच्छी लगी तुम्हारी ये ग़ज़ल. कितनी अच्छी है ये खुदा की भूल नहीं तो चाँद को नज़र न लग जाती और ये आशीष कभी सुधरने वाला नहीं है जल्दी ही कोई लड़की ढूंढ़ कर इसकी शादी करवानी पड़ेगी
ReplyDeleteरचना जी,
ReplyDeleteहाय मैं शर्म से लाल हुआ!
क्या मैं इसे आपकी सिफारिश समझूं? हा हा हा......!
जब एम बी ए कर रहा था तो एडवरटाईज़िंग में पढ़ा था: 'एनी पब्लिसिटी इज़ गुड पब्लिसिटी'
आप तो मेरा नेचर जानती हैं, मैं तो आपका शुक्रिया ही अदा करूंगा......
और हाँ, शुभस्य अति शीघ्रम ! आपके मूंह में घी-गुड़-शक्कर-रेवड़ी-मेवे-काजू-बादाम-और वो सब कुछ जो आपको पसंद है!
करवा दीजिये...........!!! मैं कहाँ मना करता हूँ!?!?!?!
सादर चरण स्पर्श!
और मोनाली जी, माफ़ी चाहता हूँ.... लेकिन ये रचना जी और मेरी पुरानी गुफ्तगू है, तभी ख़त्म होगी जब..... लिल्लाह! मैं शर्म से गहरा लाल हुआ! फिर नयी शुरू हो जाएगी!
वैसे आपने बताया नहीं के खुदा ने किसकी खैर करी?!
खुदा आपका हाफ़िज़ हो!
आशीष :-)
बहुत ही प्यारी नज़्म है...
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ReplyDeletesecond para, 'mere dard......' bahu pasand aya.
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