नहीं... मुझे इस दर्द की काट नहीं चाहिये. कोई दवा ग़र पा भी लो तो छुपा लेना मुझसे.
... कि इन ज़ख़्मों से उठता जिस्मानी दर्द मुझे तमाम रूहानी तकलीफों से आज़ाद करता है. जब ये दर्द रगों में बहता है तो मुझे ज़िन्दा होने का अहसास होता है. बदन का दर्द दुनिया जहान की उलझनों से ध्यान हटा देता है. पोर-पोर उठती तपकन पर अपना सारा चित्त एकाग्र कर लेना चाहती हूं लेकिन हवा में बहती हुई कोई आवाज़ आ रही है...
"वो मेरे हैं... मुझे मिल जायेंगे... आ जायेंगे
..ऐसे बेकार के ख़यालात ने दिल तोड दिया है"
कैसी भारी और गहरी आवाज़ है.. बेचैन सी कर देने वाली. रात भारी होती जा रही है.
यूं तो दिन में भी लगता है जैसे गले पर कोई बोझ सा है, सांस लेना मुश्किल होता जाता है. लेकिन रात... रात के अंधेरे में, जब सिर्फ कल्पनायें ही दृश्य़ होती हैं, मैं जैसे देख पाती हूं उस साये को जो आंखों में प्यार के डोरे और भवों में नफरत के फन्दे डाले मेरे गले पर अपने अंगूठे का दवाब बढाता चला जा रहा है... उसका चेहरा कितना मिलता है तुमसे.
मैं जाने किस सम्मोहन तले उसे परे हटाने की कोशिश नहीं करती. तब तक तो नहीं जब तक मेरा जिस्म अगली सांस के लिए बग़ावत नहीं कर बैठता.
हाथों में जाने कौन आ बैठता है और उसे परे धकेल देता है. मैं हडबडा कर उठ जाती हूं... हाथ-पैर फेंकती हूं "उसे" ढूंढने-टटोलने के लिए.
... कि मैं अपने क़ातिल को बांहों में भर कर चूम लेना चाहती हूं, जो मेरा सारा बोझ अपने हिस्से लिखा कर मुझे मौत की खुली आज़ाद दुनिया बख़्शना चाहता है... जो मेरी आज़ादी के एवज़ में ज़िन्दगी की ग़ुलामी ताउम्र करने को तैयार है.
मैं शायद चीख रही थी कि तुम हडबडाये से मेरे कमरे में आ गये हो.. सब रौशन कर दिया है तुमने लेकिन मुझे जिसकी बेतरह तलब है इस वक़्त वो जाने कहां गायब हो गया है. मैं तुम्हारे लिए नफरत से इस कदर भर चुकी हूं कि छलकने को हूं.
नफरत करती हूं मैं तुमसे.. घृणा है मुझे इन उजालों से...
... कि मेरा इश्क़ बस अंधेरों में ज़िन्दा होता है.
...कि तुम रौशनी में बडे दूर हुए मालूम होते हो.
...कि उजाले मेरी सौत हैं.
.. कि मैं इक रोज़ मर जाने की आस पर ही ज़िन्दा हूं.
वाह बहुत ही कमाल लिखा है लईकि ........
ReplyDelete:)
Delete:-(
ReplyDeleteयाद होगा उसे वो क़रार......तकरार न करो...
और क्या कहूँ.......
सस्नेह
अनु
:)
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ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन किस रूप मे याद रखा जाएगा जंतर मंतर को मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Shukriya :)
Deleteज़ख़्मों से उठता जिस्मानी दर्द तमाम रूहानी तकलीफों से आज़ाद करता है
ReplyDeleteशानदार ....... !!
सच में कमाल का लिखा है !!
:)
Deleteबड़ा गहरा और प्रभावी लिखा है।
ReplyDeleteनमस्कार
ReplyDeleteआप कैसी है
बहुत दिनों के बाद ब्लॉग्गिंग शुरू की है .
आपका ये लिखा हुआ बहुत सुन्दर है .
बधाई
गहरे और सुन्दर
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