Sunday, April 17, 2011
तुम्हारा प्रेम और मेरे पछतावे...
जब कभी मैं सोचती हूं...
तुम्हारी वो सितार की झंकार सी बातें...
म्रदु कोमल क्षणों की गवाह बनी रातें...
तुम्हारे किस्से... तुम्हारी हंसी...
कल के स्वप्न... आज के प्रयत्न...
डर के जंगल में रात की रानी सा महकता तुम्हारा सानिध्य...
उस पल मैं चाहती हूं कि ये सब कुछ देर और ठहर जाये...
हो कर तेरी हंसी के घेरों में कैद, मेरा वजूद बेतरह बिखर जाये...
तब...
ना जाने ये रात किस जल्दी में होती है?
मेरी लाख मिन्नतों के बाद भी, कोई पल... एक पल से लम्बा नहीं होता...
भागी चली जाती है मेरे सपनों को रौंद कर
और बिखेर देती है सूरज की लालिमा मेरे कमरे में,
मानो सिन्दूर यहां फैला हो...
मेरे सपनों का प्रवाह पहले थमता फिर टूट जाता है,
मानो रातों रात बना और बिगडा जिन्नों का कोई मेला हो...
मगर...
जब भी मैं सोचती हूं...
मेरी कोई गयी गुज़री हरकत...
तेरे प्यार की झीनी चादर से झांकती कोई नफरत...
मेरी गलती... मेरे पछतावे...
मेरे गुनाहों के रेशमी फंदों के कसते धागे...
मेरी आत्मग्लानि के ज्वालामुखी से निकलते, हमारे प्यार को कुचलते.. कंकड, पत्थर और लावे...
उस पल में दुआ करती हूं कि बातों का हर प्याला रीत जाये...
अमावस से भी अंधेरी ये चांदनी रात बस किसी तरह बीत जाये...
मांगती हूं कि...
सूरज का उजाला हो...
तेरे विश्वास की नरमी से शीतल होती मेरे पश्चाताप की ज्वाला हो...
एक ऐसी दुनिया जहां सब हो... श्वेत...धवल... उज्जवल...
ना कोयला भी वहां काला हो...
तब...
ना जाने क्यूं ये रात सुस्ती ओढ लेती है?
कालिख से भी गहरी कोई कालिमा मुझे घेर लेती है...
हर पल एक सहस्त्राब्दि में बदल जाता है और...
तुम्हारे प्रेम को हर नज़र से बचाने का...मेरी मन्नत वाला ताबीज़...
मेरी करनी के चलते मेरे देख्ते देख्ते पिघल जाता है....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
......शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
ReplyDeleteजब और तब कि कश्मकश को खूबसूरती से सहेजा है ...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशीर्षक में तुम्हार की जगह " तुम्हारा " कर लें
ReplyDeleteआपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है.........http://tetalaa.blogspot.com/
ReplyDeleteआपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है.........http://tetalaa.blogspot.com/
ReplyDeleteमगर...
ReplyDeleteजब भी मैं सोचती हूं...
मेरी कोई गयी गुज़री हरकत...
तेरे प्यार की झीनी चादर से झांकती कोई नफरत...
मेरी गलती... मेरे पछतावे...
मेरे गुनाहों के रेशमी फंदों के कसते धागे...
मेरी आत्मग्लानि के ज्वालामुखी से निकलते, हमारे प्यार को कुचलते.. कंकड, पत्थर और लावे...
वाकई में शब्दों न जैसे हर दिल की वो टीस बयां कर दी है जो उसको तब महसूस होती है जब उसकी कोई गलती......हरकत जिसने दुःख पहुँचाया हो महबूब को ..........वाह वैसे सभी शब्द बेजोड़ है .......................................
meri galati mere pachtawe.....bahut marmic rachna...kahin aasha ki kiran aur agle hi pal nirasha!!!!!
ReplyDeleteउस पल में दुआ करती हूं कि बातों का हर प्याला रीत जाये...
ReplyDeleteअमावस से भी अंधेरी ये चांदनी रात बस किसी तरह बीत जाये...
tumhari soch tumhare ehsaas prakhar hain
bhut hi khubsurat sabdo ko chuna hai apne sayad ye ehsaas dil ke kisi kone me the jo apne sabdo me piro diye... very nice...
ReplyDeleteउस पल मैं चाहती हूं कि ये सब कुछ देर और ठहर जाये...
ReplyDeleteहो कर तेरी हंसी के घेरों में कैद, मेरा वजूद बेतरह बिखर जाये...
बहुत ही उम्दा कविता जैसे प्रेम का अथाह सागर हिलोरें ले रहा हो. कई पंक्तियाँ तो एकदम लाज़बाब हैं. लेकिन प्रेम में पछ्तावे की बात क्यों?
Sangeeta ji...galti ki taraf dhyaan dilane k lie thnx...
ReplyDelete@Rachna... regret isliye kyuki even love makes mistakes
Thnx evry1 who liked ma post :)
सुन्दर लिखा है मोनाली ! :)
ReplyDeleteप्रेम के सागर में गोता लगा लिया मै...बहुर खुबसुरत...शब्दों से कुछ कहना संभव नहीं है,दिल की भावनाओं को अंदर तक छु गयी ये रचना।
ReplyDeletebeautiful creation monali . it touched the soul.
ReplyDeletemonali ji...kitna sundar likhti hain aap thanks charcha manch ka ki aap tak pahunch paaya main.....
ReplyDeletedo bar padha maine aur padhne ka man hai.....
डर के जंगल में रात की रानी सा महकता तुम्हारा सानिध्य...
उस पल मैं चाहती हूं कि ये सब कुछ देर और ठहर जाये...
हो कर तेरी हंसी के घेरों में कैद, मेरा वजूद बेतरह बिखर जाये...
तब...
ना जाने ये रात किस जल्दी में होती है?
kuchh hai jo alag hai...gahrayi tak chala gaya hai koi bhav...
...ek rachna link kar raha hun jabbbbb kabhi bhi time mile padh lena ho sakta hai aapko apani si lage..aapka prasansak hokar ja raha hun...fir-fir padhunga aapko !!
http://anandkdwivedi.blogspot.com/2011/04/blog-post_15.html
मोनाली जी पहली बार पढा आपको ।प्रेम की कशमकश को बहुत सुंदर ढंग से शब्द दिये हैं । बधाई ।
ReplyDeleteशब्द और भाव खूबसूरती से मन मोह लेते हैं..
ReplyDeleteशाबाश....:)
ReplyDeleteउस पल मैं चाहती हूं कि ये सब कुछ देर और ठहर जाये...
ReplyDeleteहो कर तेरी हंसी के घेरों में कैद, मेरा वजूद बेतरह बिखर जाये...
बहुत ही उम्दा कविता , एकदम लाज़बाब हैं.
sunder
ReplyDeletesahityasurbhi.blogspot.com
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआदरणीय मोनाली जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
मेरी गलती... मेरे पछतावे...
मेरे गुनाहों के रेशमी फंदों के कसते धागे... ।
ईश्वर करे आपकी मिन्नतें आपके मनचाहे खुशनुमा हर पल को लम्बा करे।
हम जैसे कई लोगों की, तमाम गलती और पछतावे की नुमाइंदगी करने के लिये शुक्रिया।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteaap bauhat accha likhti hain....words n emotions ko itni khoobsurti se piroya hai aapne....i just loved it :)
ReplyDeleteतुम्हारे प्रेम को हर नज़र से बचाने का...मेरी मन्नत वाला ताबीज़...
ReplyDeleteमेरी करनी के चलते मेरे देख्ते देख्ते पिघल जाता है...
Nam mein koi kaanta sa jaise atak gaya ho ... kuch fansa fansa sa hai jo nikal nahi paata ... bahut lajawaab aur prabhaavi rachna hai ..
बहुत उम्दा कविता
ReplyDeletenice poem congrats..monali ji
ReplyDeleteमोनाली जी, प्रणाम !
ReplyDeleteआतुरता, प्रार्थना, और ख्वाबों का ताना बना बुनना कोई आपसे सीखे....वाह !
मेरी गलती... मेरे पछतावे...
ReplyDeleteमेरे गुनाहों के रेशमी फंदों के कसते धागे...
सादगी और सच्चाई से कही गयी दिल की बात कविता के माधय्म से अच्छी लगी बधाई.....
मर्मस्पर्शी भाव से पूर्ण सुन्दर रचना
ReplyDeleteअक्षय-मन "!!कुछ मुक्तक कुछ क्षणिकाएं!!" से
आपने बहुत सुंदर शब्दों में मन के भावों को अभिव्यक्त किया है ..!
ReplyDeleteअन्तर्मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करती उम्दा रचना.
आपके शब्दों में कमाल का जादू है .....
बहुत सुंदर। भाव और अभिव्यक्ति दोनों ही बेमिशाल
ReplyDeleteek sudnar si kavita , jiske shabdo me kuch apna sa chupa hua hai ....
ReplyDeletebadhayi .
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
Monali,sorry der se aane k liye.isse pahle teen-char bar aakar lot gayi kisi karan bas comment nahi kar paayi.bahut achchha likha hai. tumko padhkar ek alag aanand ki anubhuti ho rahi hai.shubhkamna..likhati raho..
ReplyDeleteकोई पल...
ReplyDeleteएक पल से लम्बा नहीं होता...
कल्पना में
वास्तविकता का दखल
कभी कभी बहुत चुभता है ...
अंतर-कशमकश का अच्छे शब्दों में चित्त्रण
अच्छी रचना, शुभकामनायें !!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता। बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete---------
देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।
सुंदर शब्द और उतनी ही सुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ब्लॉग जगत में पहली बार एक ऐसा सामुदायिक ब्लॉग जो भारत के स्वाभिमान और हिन्दू स्वाभिमान को संकल्पित है, जो देशभक्त मुसलमानों का सम्मान करता है, पर बाबर और लादेन द्वारा रचित इस्लाम की हिंसा का खुलकर विरोध करता है. जो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले हिन्दुओ का भी विरोध करता है.
ReplyDeleteइस ब्लॉग पर आने से हिंदुत्व का विरोध करने वाले कट्टर मुसलमान और धर्मनिरपेक्ष { कायर} हिन्दू भी परहेज करे.
समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे
देशभक्त हिन्दू ब्लोगरो का पहला साझा मंच - हल्ला बोल
हल्ला बोल के नियम व् शर्तें
वाह...बहुत बढ़िया..खास कर तीसरी पंक्ति तो लाजवाब..
ReplyDeleteकबीले तारीफ़ रचना आपने सुंदर शब्द चयन और सुंदर भाव से इस रचना को और बेहतरीन बना दिया...बधाई स्वीकारें
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया अच्छा लगा
ReplyDeleteएक - एक शब्द प्यार के अहसासों से सराबोर कर देने वाला ......सच में यह अहसास ऐसा है जिसे कभी भी खुद से जुदा नहीं किया जा सकता ..और आपकी रचना इसकी सार्थकता को दर्शाती है .....आपका आभार
ना जाने क्यूं ये रात सुस्ती ओढ लेती है?
ReplyDeleteकालिख से भी गहरी कोई कालिमा मुझे घेर लेती है...
हर पल एक सहस्त्राब्दि में बदल जाता है और...
तुम्हारे प्रेम को हर नज़र से बचाने का...मेरी मन्नत वाला ताबीज़...
मेरी करनी के चलते मेरे देख्ते देख्ते पिघल जाता है....
वाह, वाह ,वाह ।
हो कर तेरी हंसी के घेरों में कैद, मेरा वजूद बेतरह बिखर जाये...
ReplyDeleteकितनी सुन्दर पंक्ति है ... पूरी रचना काबिले-तारीफ़ है !
बहुत सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeletebahut hi sundar abhivyakti hai chahat ki
ReplyDeleteतुम्हारे प्रेम को हर नज़र से बचाने का...मेरी मन्नत वाला ताबीज़...
ReplyDeleteमेरी करनी के चलते मेरे देख्ते पिघल जाता है..
प्रेम का ऐसा पछतावा ...मन भीग गया !
काफी केमिकल सा कुछ रिएअक्सन हो रहा है अंदर, पढ़ने के बाद :)
ReplyDeleteसच!!
nishabd..............
ReplyDelete