Saturday, January 7, 2012
...तू कहीं भी नहीं
तेरी बातों को हवा में उडा देने की फितरत भी मेरी थी
उन्हीं बातों को हवा से छीन लाने की आदत भी मेरी है
तेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बनने को रब से मिन्नत भी मेरी थी
तेरी यादों के भंवर से उबरने को धागों में मन्नत भी मेरी है
तेरे दिल में अपने लिये मुहब्बत की चाहत भी मेरी थी
तेरे ज़ेहन में खुद के लिये नफरत की हसरत भी मेरी है
तेरे ख़यालों तक को मार डालने की साजिश भी मेरी थी
तुझे ख़यालों में जिलाये रखने की ख्वाहिश भी मेरी है
इश्क़ की दीवारों से घिरी, सिर पटकती वो मूरत भी मेरी थी
ऊंचे किले के दरवाज़ों पर लिखी ये इबादत भी मेरी है
हूं 'मैं ही मैं' हर तरफ...
तेरा नाम-ओ-निशां तक नहीं
फिर भी खुद की तलाश का हर रास्ता ग़र तेरी गली से गुज़रे
तो.. अच्छी या बुरी, जैसी भी सही...
कल की ये हक़ीकत भी मेरी थी,
आज की ये किस्मत भी मेरी है...
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तुम्हें सोच कर..
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तेरी बातों को हवा में उडा देने की फितरत भी मेरी थी
ReplyDeleteउन्हीं बातों को हवा से छीन लाने की आदत भी मेरी है... बेचैन मन की हालात बेचैन मन समझ लेता है ....
मुझे अलग तू
मेरा मैं भी तू
उम्दा!!! बहुत ही बढ़िया!!!
ReplyDeleteतेरी बातों को हवा में उडा देने की फितरत भी मेरी थी
ReplyDeleteउन्हीं बातों को हवा से छीन लाने की आदत भी मेरी है
वाह क्या बात है..nice lines..
कल की ये हक़ीकत भी मेरी थी,
ReplyDeleteआज की ये किस्मत भी मेरी है...बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
कल की ये हक़ीकत भी मेरी थी,
ReplyDeleteआज की ये किस्मत भी मेरी है.
कल और आज के कशमकश में हकीकत का बयां ..
wah ji kya baat hai...aap hi aap hain to fir problem kya hai ?
ReplyDeletesunder, jabardast abhivyakti.
कल 10/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
haqikat ki sundar abhivaykti.........
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteहूं 'मैं ही मैं' हर तरफ...
ReplyDeleteतेरा नाम-ओ-निशां तक नहीं
ये ही जीवन का कटु सत्य हैं
बहुत प्यारा लिखा है आपने ........
ReplyDeleteसुंदर भावो से लिखी बेहतरीन अभिव्यक्ती..
ReplyDeleteबहुत खूब ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteखुबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत अच्छी..!!
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
बहुत खूब... खूबसूरत रचना
ReplyDeleteतेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बनने को रब से मिन्नत भी मेरी थी
ReplyDeleteतेरी यादों के भंवर से उबरने को धागों में मन्नत भी मेरी है
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
bahut sundar monali ji har pankti khubsurat hai....
ReplyDeleteमोनाली जी नमस्ते !
ReplyDeleteजो साकार हो वो ही हकीकत बाकी सब अफसाने कहे जाते हैं ...पर क्या किया जाए
आंतरिक द्वन्द को शब्दों में खूब पिरोया है आपने ...
मकर सक्रांति पर्व की अग्रिम शुभकामनाएं ... प्रदीप
बेहद खूबसूरत...
ReplyDeleteतेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बनने को रब से मिन्नत भी मेरी थी
ReplyDeleteतेरी यादों के भंवर से उबरने को धागों में मन्नत भी मेरी है
वाह, बहुत खूब!
Bewafai aur wafadari pyar mai dono k liye dukhdai hote hai chit bhi mera aur pat bhi mera ...... Aapki rachana achi hai magar ye khyalat ek ache inshaan k nahi ho sakte bura na maniye ham to yahi sochte hai ya to sath do ya saaph na kah do aapki vajha se doosre ko takliph na ho to acha hai
ReplyDeleteबहुत खूब ... गहरा एहसास लिए ...
ReplyDeleteबहुत खूब... खूब अच्छी लगी यह नज़्म
ReplyDeleteसुभान अल्लाह मोनाली !!!!
ReplyDelete"कल की ये हकीकत भी मेरी थी
आज की ये किस्मत भी मेरी है"
उफ्फ्फ यार कमाल की बात कही है !!!!
जियो यार !!!
इश्क़ की दीवारों से घिरी, सिर पटकती वो मूरत भी मेरी थी
ReplyDeleteऊंचे किले के दरवाज़ों पर लिखी ये इबादत भी मेरी है!
ghazal ka urooz hai ye sher. bahut khoob. once again welcome to my blog www.utkarsh-meyar.blogspot.com