Friday, December 16, 2011
तब भी नहीं हंसोगे क्या?
तुम्हें हमेशा शिकायत रहती है ना कि मेरा लिखा हमेशा ही बडा उदास रहता है. जानते हो क्यों? क्योंकि मैं केवल तब ही लिखती हूं कि जब तुम उदास होते हो, जब मेरी सुनने के लिए तुम मुझे नहीं मिलते तब ही तो कागज़ों का रुख करती हूं.
देखो जी... तुम चाहे नाराज़ हो जाओ या खमोश मगर यूं उदास मत हो जाया करो. तुम्हारी आवाज़ की उदासी मेरे चेहरे, मेरे ख़यालों पर धुंध बन कर छा जाती है और लगता है कि क्या ही फायदा खिलखिलाने का जो तुम ये भी ना कहो कि, "तुम्हारी हंसी में एक खनक-सी है, मानो कई घुंघरू हाथ से गिर कर दूर तक बिखर गये हों."
लेकिन मेरी हंसी को अकेले बाहर निकलते डर सा लगता है अब. तुम्हारे ठहाकों के हाथ में हाथ डाल कर चलने की आदत हो चली है इसे. सच मानो, तुम्हारी वो बेफिक्र, जानदार हंसी बडा सुकून देती है. हां, घुंघरुओं की सी खनक तो नही मगर किसी नौसिखिये के छेडे साज़ के तारों की झंकार-सी है. या शायद ना भी हो... जो लोग कहते हैं कि प्यार मे आंखों पर पट्टी बंध जाती है, उन्होंने कानों के बारे में कुछ नहीं कहा तो हो सकता है कि प्यार मे कानों पर भी रूई के नर्म फाहे बंध जाते हों.
वज़ह चाहे जो भी हो, मुझे तुम्हारी हंसी में कोई धुन सुनाई देती है जिसे सुन कर मेरी दबी-छुपी हंसी सारे दरवाज़े खोल कर (और कई बार तोड कर भी...), शर्म के सुर्ख दुपट्टे को पांव तले रौंद कर मेरे होठों पर थिरकने चली आती है. और मेरी उदासी को शायद संगीत की समझ नहीं तो वो आंसुओं का बोरिया-बिस्तर समेट कर जाने कहां चली जाती है... शायद उसके पास जिसका प्रियतम उस रोज़ मुस्कुराये बिना ही घर से निकल गया हो.
खैर.... ये सब जिरह मैं उस पल एक तरफ रख कर तुम्हारी जादुई हंसी के असर तले खो जाना चाहती हूं और ठीक तब ही मुझे तुमसे एक बार फिर प्यार हो जाता है. एक बार फिर ये भरोसा हिलोरें लेने लगता है कि बस तुम्हारा साथ काफी है मौत से अगली सांस छीन लाने के लिये. एक बार फिर अंधेरे मे भी सब उजला और निखरा नज़र आने लगता है. एक बार फिर बेफिक्री ज़िन्दगी के सलीके से टक्कर लेने को तैयार हो जाती है...
अब बताओ ग़र मैं कहूं कि तुम्हारी एक मुस्कुराहट से इतना सब संवर जाता है तब तुम दो-एक बार मेरे लिये अपनी इस जानलेवा उदासी की जान नहीं ले लोगे क्या???
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इतना सब पढ़ कर तो उदासी का क़त्ल ही कर देंगे ..:):) भाव प्रवण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर मोनाली जी.
ReplyDeleteआपके लेखन की शैली अच्छी लगी.
भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार आपका.
मेरे ब्लॉग पर भी आती रहिएगा जी.
payega apni priyatama se..
ReplyDeleteAise shadon ka manuhaar..
Kyon na wo hans dega sang main...
Taj ke man ke sabhi vikaar....
Bahut hi sundar bhavabhivyakti...
Deepak shukla..
कभी कभी यूँ ही बेखबरी सी होती है... अपनी साँसों की हर एक गिरह जब किसी एक ख़ास मुस्कराहट के बदले खोलना चाहते हैं हम... अपनी खुशियों की पहेलियाँ सुलझाते हुए न जाने कैसे उसकी खुशियों में अपना वजूद ढूँढने लग जाते हैं...
ReplyDeleteजब भी उसके चेहरे पे शिकन की रेखाएं उभर आती हैं, तुम्हारे मन में बहता हुआ पानी भी उदास हो जाता होगा न.... :-/
ReplyDeleteखैर.... ये सब जिरह मैं उस पल एक तरफ रख कर तुम्हारी जादुई हंसी के असर तले खो जाना चाहती हूं और ठीक तब ही मुझे तुमसे एक बार फिर प्यार हो जाता है. एक बार फिर ये भरोसा हिलोरें लेने लगता है कि बस तुम्हारा साथ काफी है मौत से अगली सांस छीन लाने के लिये. एक बार फिर अंधेरे मे भी सब उजला और निखरा नज़र आने लगता है. एक बार फिर बेफिक्री ज़िन्दगी के सलीके से टक्कर लेने को तैयार हो जाती है...
ReplyDeleteufffffffffffff........... ! muddat baad ek natural si muskurahat antas se mahsoos ki hai ! bahut-bahut pyaari iltiza hai... jaroor maan li jaiyegi ! :)
बहुत प्यारी सी चाहत ........
ReplyDeleteYe mahaz daiary ke panne nahi jeeta jaagta vaqt jase guzar raha ho aankhon ke saamne se .... Lajawab ....
ReplyDeletewoww...... amazing script.....dil tak asar kar gayi :)
ReplyDeletekitni saafgoyi hai tumhari baato me aur kitni sahzta se likh leti ho har sacche ehsaas ko...haan..sach me aisa hi hota hai...जब मेरी सुनने के लिए तुम मुझे नहीं मिलते तब ही तो कागज़ों का रुख करती हूं.
ReplyDeleteaur...मुझे तुम्हारी हंसी में कोई धुन सुनाई देती है जिसे सुन कर मेरी दबी-छुपी हंसी सारे दरवाज़े खो.....
aur ant me ye...अब बताओ ग़र मैं कहूं कि तुम्हारी एक मुस्कुराहट से इतना सब संवर जाता है तब तुम दो-एक बार मेरे लिये अपनी इस जानलेवा उदासी की जान नहीं ले लोगे क्या???
jabardast ...isiliye to ham aapke lekhan k kayal hain.:-)
Wow. Bahut khub hai
ReplyDeleteअरे कौन है जिसने अभी तक उदासी की विदाई नहीं की है. वैसे बात में एक गहरी सच्चाई है. एक मुस्कुराहट दिन सवारने के लिए काफी है. बहुत अच्छा लिखा है. बधाई.
ReplyDeleteवाह ....बहुत खूब कहा है ...
ReplyDeleteहंसना मुस्कुराना ही तो जीवन है।
ReplyDeleteबढि़या आलेख।
ये मुस्कराहट का अजीब होना भी हमें प्यार होने के बाद ही समझ आता है, जब कोई लतीफे नहीं सुनाता, फिर भी हंसी आती है, और वही हंसी, जीने का कारण बन जाती है|
ReplyDeleteबढ़िया लिखी हो!!! वैसे गायब कहाँ हो आजकल??? नो सोशल नेटवर्किंग दीज डेज!!!! :) :)
....बहुत खूब कहा बहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteati ramniya Monali ji :)
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