Sunday, July 4, 2010


दिन सूने और रातें उजली
संग सजे मुस्कान और सिसकी
सबकी नई नई सी सूरत, सबकी सीरत बदली बदली

दिल में सबके कुछ राज़ दफ़न हैं
हर एक अदा है ज़रा अलग सी
वो लुटती अपनों के हाथों
इसी से उसको कहते पगली
खामख्वाह ही बन जाते किस्से
और बंट जाते जैसे चिठ्ठी पत्री

सबकी नई नई सी सूरत, सबकी सीरत बदली बदली

उसके दुःख में कई मुनाफ़े
सुख में निरों की हालत पतली
उसे सुना कर तीखी बातें
खुद ही खुद को लगती मिर्ची
राम नाम का सत्य भुला कर
नीयत कुछ सिक्कों पर फिसली

सबकी नई नई सी सूरत, सबकी सीरत बदली बदली

कहते किये अह्सान कई हैं
करते बातें अगली पिछली
कुछ पे वो बस हंस देती है
कुछ पे घिन से आती मितली
चील कौवे से बैठे फिराक़ में
कब उस पर टूटेगी बिजली

सबकी नई नई सी सूरत, सबकी सीरत बदली बदली

8 comments:

  1. sabkinai naisurat,,,sabki seerat badal gayee...vaah jitani taarif ki jaye kam hai. bahut badhiya.

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  2. कितना सच है ये सब मोनाली. साथ ही मन को कचोटता भी है पर यही यथार्थ है

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  3. इस छोटी उमर में आपकी यह दृष्टि देखकर अच्‍छा लगा। किसी की पीड़ा को आपने बहुत संवदेनशीलता और सवाल उठाते हुए व्‍यक्‍त किया है। अपनी कविता और लेखन में यह तेवर बनाए रखना। शुभकामनाएं।

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  4. बेहतरीन कविता मोनाली जी..... बहुत खूब!

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  5. achhi rachna ke liye badhai.....

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  6. BAHUT ACHCHHI HAIN ANTIM PANKTIYAN...

    aapke blog mein mujhse blog manager g ne bar bar kaha k main man na man main tera mahman hoon.. ch ch ch ..phir bhi gustakhi muaf..aadaab !

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  7. बेहतरीन कविता मोनाली जी..... बहुत खूब!

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  8. बहुत सुंदर भाव युक्त कविता

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