Tuesday, July 6, 2010

मैं फलक की तरफ चली रेत पे कदम के निशान बनाते हुए...
मेरी हमकदम थीं लहरें मेरा हर निशां मिटाते हुए...

5 comments:

  1. मंजिल की ओर उठते हर कदम के पीछे की कहानी दास्‍तां
    वो मिटे कि रहे दुनिया को इससे क्‍या वास्‍ता
    अभी आप कहां खड़े हैं वही दुनिया देखती है.

    सुन्‍दर पंक्तियों के लिए. धन्‍यवाद.

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  2. सुन्‍दर पंक्तियों के लिए. धन्‍यवाद

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