अब से कोशिश करूंगी तुझे भूल जाने की
क्योंकि रंग लाती नहीं दिख्ती कोई कोशिश संग घर बसाने की
चंद दिनों के आंसू और एक उमर का दर्द्
नहीं कोई बडी कीमत इश्क़ की नेमत पाने की
दीवारों से सिर पटके तू गवारा नहीं मुझे
और मुझमें हिम्मत नहीं दीवारें तोड आने की
दिल की दौलत लगती दो कौडी की
जब होती बात खज़ाने की
मेरा जीवन मुझसे ज़्यादा जी कर भी वो कहते हैं
नहीं सुनेगी बात हमारी ये फसल नये ज़माने की
तू भी मुझको याद ना करना
जान कीमती बर्बाद ना करना
ज़िन्दगी का क्या है? कट जायेगी...
या तो अल्हड नदिया सी या फिर ठहरे पानी सी
शानदार पोस्ट
ReplyDeleteदीवारों पर सिर पटके तू गंवारा नहीं मुझे
ReplyDeleteऔर मुझमें हिम्मत नहीं दीवार तोड़ आने की
शायद यही हिम्मत है जो दम तोड़ रही है और न जाने कितने अरमानों को दम तोड़ना पड़्ता है
बहुत खूबसूरती से आपने बात कही है
बहुत सुन्दर रचना
कविता बेशक अच्छी है! एक पराजित प्रयास.....
ReplyDelete'याद ना करना' से मैं सहमत नहीं!
आपकी इजाज़त से:
लम्हा
लम्हा-लम्हा बनता जीवन,
इस जीवन में कुछ लम्हे हैं!
इन लम्हों में से कुछ लम्हे,
तेरे-मेरे संग गुज़रे हैं!
इन लम्हों को तू हर लम्हा,
अपने संग संजो कर रखना!
जाने जीवन के किस लम्हे में,
तुझको मेरी याद आ जाए!
जिस लम्हे में मेरी याद आये,
उस लम्हे में ग़म मत करना!
मुस्का देना उस लम्हे में,
आँखों को तू नम मत करना!
जिन्दगी क्या है? कट जायेगी...बहुत खूब...बेहतरीन!!
ReplyDeleteवाह जी ! सुन्दर भावनात्मक रचना है !
ReplyDeleteदीवारों से सिर पटके तू गवारा नहीं मुझे
ReplyDeleteऔर मुझमें हिम्मत नहीं है दीवारें तोड़ आने की
सीधी सच्ची दो टूक बात ,न लाग न लपेट ..यह दिल तोड़ना नहीं है..साफ़गोई है ; जिसका असर कभी नहीं जाता और जो इश्कवाले है ,वे आह भर कर प्यार से यही कहते हैं :-
कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी ?
यूं ही कोई बेवफ़ा नही होता
तसलीम मोनाली... बहुत खूब
दीवारों से सिर पटके तू गवारा नहीं मुझे
ReplyDeleteऔर मुझमें हिम्मत नहीं है दीवारें तोड़ आने की
सीधी सच्ची दो टूक बात ,न लाग न लपेट ..यह दिल तोड़ना नहीं है..साफ़गोई है ; जिसका असर कभी नहीं जाता और जो इश्कवाले है ,वे आह भर कर प्यार से यही कहते हैं :-
कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी ?
यूं ही कोई बेवफ़ा नही होता
तसलीम मोनाली... बहुत खूब
ज़िन्दगी क्या है कट जाएगी....कई बार कहना आसान होता है लेकिन काटना मुश्किल...बहुत अच्छी रचना है आपकी...लिखती रहें...
ReplyDeleteनीरज
मन के दर्द को बखूबी लिखा है....
ReplyDeleteबहुत खूब ... कमाल के शेर हैं ... दीवार तोड़ कर आना सच में आसान नही होता ...
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल है ...
ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए
ReplyDeleteइक आग का दरिया है और डूब के जाना है
जीवन के सबसे सरल होते हुए कठिन विषय पर आपने कलम चला डाली है. कोई हल निकालिए
सिर झुकाए बैठी हुई कोई भी लड़की मुझे निजी तौर पर अच्छी नहीं लगती.
बाकी रचना शानदार है.
बहुत ही सुन्दर पहली दो पंक्तियाँ कमाल की है.
ReplyDeleteअब से कोशिश करुँगी तुझे भूल जाने की
रंग लाती नहीं दिखती उम्मीद घर बसाने की... भाव बेहद गहरे हैं एक सीधी सच्ची बात कितनी अनमोल लगती है. ग़ज़ल की तकनीक से अलग और अनुभूति के स्तर पर लाजवाब रचना है
लेकिन भूलने में मोनाली शायद ज़माना लगे..
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