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"कुछ बोलती क्यूं नहीं? विनय कहां हैं? तु अकेली कैसे आ गयी ससुराल से?"
"मां जीजी को अंदर तो आने दो." मैंने जीजी का बैग हाथ से लेते हुए कहा
"निवी, कुछ तो बोल. कहीं झगड के तो नहीं आयी ना? देख बेटा झगडे हर जगह होते हैं मगर यूं कोई अपना घर छोड देता है क्या? तू सुन भी रही है?"
मगर जीजी बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गयी. शायद जानती थी कि अगर बोलेगी भी तो कोई नहीं सुनेगा. और् इसी तरह बिना कुछ कहे एक दिन वो चली गयी.
आज हम सब को छोड कर उसे गुज़रे हुये उसे २० दिन हो गये हैं. उसके कमरे को अब भाभी के लिए खाली करना है. उसके लिए ही जब जगह नहीं थी तो उसके सामान के लिए कहां से आयेगी? तभी एक लिफाफा नज़र में आता है. कोई चिट्ठी है शायद...हां, मां के लिए जीजी की आखिरी चिट्ठी... मां ने उसे सबके सामने लाने को मना किया है. रात को मैं मां के कमरे में कांपते हाथों से वो चिट्ठी खोलती हूं...
मां... तुम्हें याद है हमारा बचपन? जब बाबा नये बस्ते लाये थे? मैं, छुटकी और दादा तीनों को ही वो लाल बस्ता पसंद था मगर वो मेरे हाथ नहीं आया क्योंकि छुटकी छोटी थी तो पहली पसंद उसकी थी और दादा बडे थे मगर तुम्हारी समझदार बेटी हमेशा से मैं ही थी. वो मेरा 'त्याग' का पहला सबक था या शायद तुम्हारी पहली कोशिश मुझे समझाने की कि ज़िन्दगी ऐसे ही कटेगी. और तब से हर दिन ही ना जाने कितने समझौते मैं करती चली गई. ना जाने मेरी कितनी ही चीज़ों से सब अपनी पसंद बीनते रहे और मैंने कभी नहीं जाना कि वो मुझसे क्या छीनते रहे. मैं तब भी त्याग शब्द के मायने से अनजान थी मगर हां कुछ चुभता ज़रूर था जिसे कभी ज़ुबान नहीं दे पाई.मगर दूसरों के लिए खुद की खुशी को नज़रअंदाज़ करने की आदत धीरे धीरे मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा बन गई.
और वो दिन तुम भूल सकती हो मगर मैं नहीं कि जब मैंने एम.ए. हिन्दी में करने की इच्छा जताई थी मगर ये डिग्री शायद बाबा के स्टेटस को match नही करती थी और फिर मैंने एम्.बी.ए. किया.मेरी बैक में नौकरी लगने के बाद वो गर्व से सबसे कहते थे कि उनके एक सही निर्णय ने मेरी ज़िन्दगी बना दी. बना दी या बिगाड दी इस बहस में तो मैं कभी पडी ही नहीं..मगर हां बदल तो दी ही थी.
मेरी पसंद तो शायद तिलांजलि देने की आदि हो चुकी थी मगर मेरे शौक को ये सीखना अभी बाकी था मगर सिखाने के लिए कई लोग मौजूद थे और मैं ये भी सीख ही गयी...
बस एक वो ही था जिसने कभी मुझे बदलने की कोशिश नहीं की, खुद ही बदला... वो भी मेरे लिए. और ऐसे में अगर मुझे उस से मुहब्बत हो गई तो इसमें कोई अनहोनी तो नहीं थी. मैं दिन रात सपने सजाने लगी थी उसके साथ घर बसाने के. ठान लिया था कि इस बार सबसे लड जाऊंगी. मगर शायद मैं खुद को जानती नहीं थी. तुमने बस एक बात कही और मेरे सारे सपने झुलस गये. पता नही तुम्हें याद है या नही मगर तुम्हारा कहा हर शब्द मेरे ज़ेहन में तरोताज़ा है.. "चुन लो अगर अपनी ग्रहस्थी की नींव में छुटकी का भविष्य देख सकती हो. सोचा भी है कि तुम्हारे ऐसा करने से उसकी शादी में कितनी मुश्किलें आयेंगी?"
इस एक बात के सिवा तुमने कुछ नहीं कहा और इस एक बात के बाद मैंने भी कुछा नहीं कहा.तुम मुझे कितना अच्छे से जानती थीं ना मां? तुम जानती थीं कि इतना भर कह देना काफी होगा मुझे मेरे सपनों की आहूति देने को विवश करने के लिए.
मैंने अपने प्यार को मेरी और विनय की शादी कि अग्नि में स्वाहा कर दिया.विनय जो तुम्हारी पसंद थे मगर ये शादी उनके लिये भी एक समझौते से ज़्यादा कुछ नहीं थी.
मगर सच कहूं तो तुम पर कभी गुस्सा नही आया क्योंकि तुम खुद ऐसी ही कई आहूतियां देती आई थीं. मेरे और मेरे जैसी हर लडकी के लिए उसकी मां ही तो ऐसे त्याग के आदर्श गढती है...
और बस आज जब ये ख़त लिख रही हूं तो मेरी और विनय की शादी को एक महीना तो हुआ है. मगर ये एक महीना मुझसे सब कुछ ले गया.. मेरी जीने की उमंग भी और मेरी वो बेटी भी जो शायद अपनी मां की आपबीती से डर कर मेरे गर्भ में ही दुबक गई.
नहीं, विनय ने कभी कोई दुर्व्यवहार नहीं किया मेरे साथ, कभी ऊंची आवाज़ में बात भी नही की. बस शादी के कुछ दिन बाद इतना भर कहा था कि उनकी मां के रहने तक ये घर मेरा है मगर मां के बाद मुझे जाना होगा जिससे उनकी पसंद मेरी जगह ले सके. और इसके बाद ना जाने क्यूं जैसे कुछ नहीं रहा. मैं.. जो अपनों की हर ज़्यादती को पीती रही.. उस शख्स से कैसे हार गई जिसे बस कुछ ही दिनों से जानती थी.
मन में कई बार आया कि उनसे पूछूं कि ये सब उस रात क्यूं नही कहा जब फूलों से सजे उस बिस्तर पर मेरे पहले प्यार ने आखिरी सांसें ली थीं? मगर इस सवाल का जवाब मन ने ही दे दिया.. "तुम उस रात मुझे नज़र का टीका लगाना जो भूल गयी थीं"
मैं जानती हूं कि तुम रो दोगी और अनचाहे ही तुम्हारे आंसुओं का ये कर्ज़ मेरे सिर पड गया है. इसे चुकाने को अगले जनम में फिर से तुम्हारी बेटी बन कर आऊंगी बस तब मुझे "त्याग" के मायने मत समझाना...
जीजी का वो ख़त उन सब सवालों के जवाब दे गया जो वो अपने पीछे छोड गई थी. मगर मां नहीं रोयी.. शायद इसलिये कि कहीं जीजी के सिर उसके आंसुओं का कर्ज़ ना चढ जाये...