Saturday, March 28, 2009

बोनसाई

बोनसाई का ये व्रक्ष
जो होना चाहता था विस्त्र्त्, असीम्, अनन्त
नापना चाहता था अन्तराल.. धरा और आकाश के बीच का
चाहता था फलो से लद जाना, नम्रता से झुक जाना
मस्त पुरवाई के साथ बौराना
पेड़ होने की सार्थकता पाना
लेकिन हसरतो की कलिया खो गई कला की आन्धी मे
हा आन्धी कला की...
लोग इसे कला ही कहते है
दूसरे के अस्तित्व को समेट कर प्रसिद्धि और प्रशन्सा के किले खड़े करना
किसी के असीम होने के स्वप्न को चारदीवारी मे बान्ध देना
और खुद को कलाकार का दर्जा देना
यही कला है?
लेकिन ये क्या?
ये बोनसाई तो हन्स रहा है
कहता है मै खुश हू
क्योकि आशा का दामन अभी छूटा नही है
उम्मीद से रिश्ता टूटा नही है
क्या हुआ जो मै यहा हू?
मेरे अन्श, मेरे बीज विस्त्र्त्, असीम्, अनन्त
नापेगे अन्तराल धरा और आकाश के बीच का...

4 comments:

  1. शायद जिस तरह पीपुल फार एनीमल जानवरो को मुक्त करवाने हेतु प्रयत्न शील हैं उसी तरह के जागरण अभियान की जरूरत है , पेड़ पौधो में भी तो जान होती है , फिर हरएक को प्रकृति ने स्वच्छंद होकर विकास करने की छूट दी है , मनुष्य कौन होता है किसी बड़े वृक्ष को कम पानी कमभोजन देकर बौना बनाने वाला ...एनी वे ब्लाग जगत में स्वागत है आपका

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  2. monu........
    main bhi kuch kehna chahti hu.......

    MERE TOOTE HUE DIL KO, SAHARA KAUN DEGA..
    MERI TOOFAAN MAIN HAI KASHTI,KINARA KAUN DEGA

    YEH KESE MOD PE LAYI HAI MUJHKO ZINDIGAANI
    ADHOORI SI LIKHI GAYI HAI KYUN MERI KAHANI
    HAI AB KIS RAAH PE CHALNA ISHARA KAUN DEGA
    MERE TOOTE HUE DIL KO SAHARA KAUN DEGA

    MAIN HOON OUR SATH MERE AB MERI TANHAAYAN HAI
    MERI TAQDEER SE MUJHKO MILI RUSWAYIAN HAI
    MERI ANKHON KO KHUSHION KA NAZARA KAUN DEGA
    MERE TOOTE HUE DIL KO SAHARA KAUN DEGA!!!!!!

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  3. *****अति सुन्दर॥॥॥॥॥॥। बधाई जी आपको।
    आपके ब्लोग को "हे प्रभु" के साईडबार मे "महिला ब्लोग" मे स्थान दिया जा रहा है, ताकि आप जैसे हिन्दी सेवा भावीयो का पाठक अवलोकन कर सके। देखे। आभार.
    HEY PRABHU YEH TERA PATH

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