Tuesday, October 12, 2010

खुली आंखों का स्वप्न


भोर की पहली किरण से गोधूलि की सांझ तक...
पानी की शीतलता से अग्नि की आंच तक...
मिथ्या की संतुष्टि से सत्य की प्यास तक...
विछोह की पीडा से मिलने की आस तक...
जीवन के प्रारम्भ से म्रत्यु की अंतिम सांस तक...

मैं खुद को तेरी हंसी के उजले सवेरे में देखा करती हूं
मैं खुद को तेरे कल के बसेरे में देखा करती हूं

24 comments:

  1. हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
    कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....

    ReplyDelete
  2. कुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।

    ReplyDelete
  3. दो दिलों के एक हो जाने की सुंदर कल्‍पना।

    ReplyDelete
  4. वाह क्या लिखा है बेहतरीन...मज़ा आ गया..

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर रचना ... दिल को छुं गई !

    ReplyDelete
  6. Wo sab to theek hai jee..........
    But eyes are closed!!!!!
    Ashish

    ReplyDelete
  7. मैं खुद को तेरी हंसी के उजले सवेरे में देखा करती हूं...
    मनभावन.

    ReplyDelete
  8. behadh khoobsurat....hansi ke ujaale..wow

    ReplyDelete
  9. प्रारब्ध का मतलब भाग्य नहीं होता ? (!)

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  11. बेहतरीन .. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  12. अच्छा है खुली आँखों से देखा ये स्वप्न. बंद आँखों के सपनो के सच होने का सपना सपना ही रह जाता है

    ReplyDelete
  13. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति !भाव उत्तम हैं, आनन्द आया !

    बस "प्रारब्ध" शब्द को मृत्यु से जोड़ने को लेकर कुछ शंका है… उपयोग में कुछ गलत नही पर बाकि सभी पन्क्तियों के परिपेक्ष्य में प्रारब्ध और मृत्यु में तालमेल नहि बैठा पा रहा हूँ !

    ReplyDelete
  14. प्रेम के सारे तत्व मौजूद है आपकी नज़्म में .....!!

    ReplyDelete
  15. 'मिथ्या की संतुष्टि से सत्य की प्यास तक...'

    बहुत उम्दा ...

    गत माह आपने हौसला बढाया था......एक और रचना हाज़िर है ...कृपया मार्गदर्शन करें ..

    http://pradeep-splendor.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

    ReplyDelete
  16. nazar paini hai ...prem ne kar di hai ..pahli baar dekh raha hun .."prem andha nahi kar raha hai " balki raushni de raha hai .... achhe ehsas hain ... keep writing...

    ReplyDelete
  17. Thnk u ol.. n m sorry.. i used 'PRARABDH' instead of 'PRARAMBH'.. thnx to those who told me ma mistake..

    ReplyDelete
  18. बहुत ही सुंदर कविता है। बधाई।

    ReplyDelete
  19. मैं खुद को तेरी हंसी के उजले सवेरे में देखा करती हूं...

    शुक्रिया !
    एक बेहतर जज़्बात को पैरहन पहनाने के लिए ।
    ख़ुदा करे कि ये दीद का सिलसिला क़ायम रहे !

    ReplyDelete
  20. मिथ्या की संतुष्टि से सत्य की प्यास तक...
    मैं खुद को तेरी हंसी के उजले सवेरे में देखा करती हूं


    Kya baat hai!!...jeevan ki philosophy ..

    ReplyDelete
  21. बबुत खूब ... कोमल प्रेम क़ि निश्चल अभिव्यक्ति .....

    ReplyDelete
  22. यहाँ से गुजर रहा था तो सोचा आपको याद दिला दूं कि आप लिखा करती हैं शायद भूल गयी हैं....:) आपके पोस्ट के इंतज़ार में...

    ReplyDelete
  23. that is really beautiful ...liked it :)

    ReplyDelete