कोई किसी जाहिल को इतना याद कर सकता है???
जबकि पता हो कि तुम होते भी तो इस वक़्त तक सो गये होते,
इस बात से बेपरवाह कि मैं करवटें बदलती हूं रात सारी...
तुम्हें जगाना चाह कर भी जगा नहीं पाती, हालांकि मालूम है मुझे कि;
"फिक्र की खुराक इश्क का ज़ायका खराब किये दे रही है..."
कोई किसी जाहिल को इतना याद कर सकता है???
जबकि पता हो कि तुम होते भी तो इस वक़्त तक सो गये होते
तब तुम्हारी उस बेपरवाह नींद को मैं सारी रात खुली आंखों से निहारती,
चाहती उठ जाना और टहलना यूं ही इस सूने, बिना आंगन वाले घर में...
किसी किताब से अपनी मनपसंद पंक्तियां पढ लेने की शदीद इच्छा को दबा देती कि;
कहीं तुम जाग ना जाओ...
कोई किसी जाहिल को इतना याद कर सकता है???
जबकि पता हो कि तुम होते भी तो इस वक़्त तक सो गये होते ...
चिढती, खांसती- खखारती मगर ऐसे कि;
कोई खलल ना पडे तुम्हारी नींद में...
और सोचती कि तुम्हारा होना- ना होना बराबर सा ही है...
मगर जब बिस्तर में तुम्हारी जगह एक निरा निश्चल तकिया भर पडा देखती हूं तो मालूम होता है कि तुम्हारा नींद में करवट भर बदल लेना भी एक सुकून है..
कभी यूं ही कच्ची नींद मे पूछ लेना कि "सोयी नहीं अब तक" और मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना ही फिर करवट बदल कर सो जाना भी एक सुख है...
जब तक खो ना जाये, तब तक निरा अनजाना ही रहता है बहुत कुछ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-09-2013) महामंत्र क्रमांक तीन - इसे 'माइक्रो कविता' के नाम से जानाः चर्चा मंच 1368 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग के लिए एक जबरदस्त ऐड साईट
मगर जब बिस्तर में तुम्हारी जगह एक निरा निश्चल तकिया भर पडा देखती हूं तो मालूम होता है कि तुम्हारा नींद में करवट भर बदल लेना भी एक सुकून है..
ReplyDeleteकभी यूं ही कच्ची नींद मे पूछ लेना कि "सोयी नहीं अब तक" और मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना ही फिर करवट बदल कर सो जाना भी एक सुख है...
आपके शब्दों ने भारतीय नारी का पूर्ण समर्पण ,सच्चा प्यार ,संस्कार सभी के दर्शन करा दिए वाह बहुत अच्छा लिखा बधाई आपको
जब तक खो ना जाये, तब तक निरा अनजाना ही रहता है बहुत कुछ। एक कड़वा पर सच्चा अनुभव उकेर दिया आपने। संवेदना की सीमाएं खोद डालीं आपने।
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