Saturday, November 3, 2012

रिश्ता अंधेरों का... रिश्ता आवाज़ों का...

वो आज जा रहा है.. दूर... मुझसे दूर, जाने किसी के पास या सबसे दूर!




अब उसे परेशान करना चाह कर भी मैं उस तक नहीं पहुंच पाऊंगी. उसकी आवाज़ की ताजगी शायद अब लम्बे अरसे तक नसीब ना हो. बासी पुरानी आवाज़ से काम चलाना होगा जो तेल, चीनी, नमक डाल कर कण्टरों में भर कर Preserve कर दी है.

उसने एक बार कोई कहानी सुनाई थी जिसमें लोग पेडों को confession box बना कर अपना सारा सच फूंक आते थे लकडी के कानों में. अब चूंकि मुझे भी बदले में कुछ कहना था तो मैंने भी उसे अपने बचपन से उठा कर एक कहानी अपनी सांसों में gift wrap कर के दी थी जिसमें पेडों से बने साज़ों ने लोगों के सारे सच दुनिया के सामने उजागर कर दिये थे.

उसकी सारी समझदारी भरी बातों के जवाब में बस मेरा जाहिलपन ही मुखर होता था मगर फिर भी वो कहता था कि "हम दोनों एक-दूसरे के confession box हैं." बिना इस डर के कि  हमारे सचों के लिये हमसे नफरत भी की जा सकती है, हम एक-दूसरे के कान में बिना झूठ की मिलावट के कभी शहद से मीठे और कभी ज़हर से कडवे सच उगल देते थे. और उन दिनों में अक्सर सोचा करती थी कि अच्छा है जो हमारे बदन की हड़ी-चमडी से कोई साज़ नहीं बनाये जा सकते और जिस तरह उसके सच मेरे साथ खाक़  हो जायेंगे, मेरे सच भी दुनिया की नज़रों से बचे रहेंगे. वैसे अगर मेरे सच उसकी दुनिया में सरे-बाज़ार हुये भी तो क्या ही फर्क पडने वाला है! ये भी एक तसल्ली ही है कि उसकी दुनिया  में मुझे और मेरी दुनिया में उसे कोई नहीं जानता.

समझ ही नहीं आता जाने कैसे तो शब्दों का जामा पहनाया जा सकेगा हमारे रिश्ते को. कैसा अजीब सा किसी परिभाषा में ना बंध सकने वाला रिश्ता.. उन रिश्तों से एक दम अलग जो अपने पुरअसर वजूद के साथ आप पर हावी नहीं रहते.

ऐसा रिश्ता जो होता है तब भी आपको नहीं बांधता और जब नहीं होता तब भी आपको भरोसा होता है कि कहीं कोई तो है जिससे कभी भी कुछ भी बेझिझक कहा जा सकता है, बिना judge किये जाने के डर के.ऐसा रिश्ता जिसमें भरोसा रहता है कि चाहें लाख अंधेरे आपको घेर लें, एक जगह ऐसी भी है जहां रौशनी है... जहां जा कर खुद को ढूंढा जा सकता है... जहां तमाम guilts के बाद भी आंखों में आंखें डाल के बात की जा सकती है.

रिश्ता जिसे नाम देना चाह कर भी किसी रिश्ते की हद में नहीं बांधा जा सकता... रिश्ता जो कोई नाम ओढते ही मैला पड जायेगा.. प्यार, परिवार, दोस्ती, वासना इन सबमें थोडा-थोडा बंटा हुआ और फिर भी इन सबसे परे... रिश्ता अंधेरों का... रिश्ता आवाज़ों का... रिश्ता आज़ादियों का... रिश्ता मेरा और तुम्हारा

9 comments:

  1. रिश्तों के अंधेरों और उजालों के बीच रिश्तों की अहमियत तलाशती सुंदर प्रस्तुति. हर बार की तरह इस बार भी भावनाओं के समंदर में बहा दिया.

    सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.

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  2. rishton ki garmahat dikh gayee:), Rachna jee ne sahi kaha...
    bethareen Monali:)

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  3. RISHTON KO SAMAJHTI HAIN AAP... BADHIYA LIKHTI HAIN. SHUBHKAAMNAYEN .

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  4. दुनियावी नहीं, रूहानी रिश्ता!
    जय जिनेन्द्र!

    --
    द स्पिरिचुअल कनेक्ट: ए ट्रिब्यूट टू मम्मी

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  5. प्रशंसनीय प्रस्तुति

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  6. like it..very nice
    ऐसा रिश्ता जो होता है तब भी आपको नहीं बांधता और जब नहीं होता तब भी आपको भरोसा होता है कि कहीं कोई तो है

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