Saturday, February 18, 2012

सोचती हूं...

तुम अक्सर कहते हो कि मेरे मन की थाह लेना चाह कर भी तुम कभी मुझे समझ नहीं पाते और यकीन मानो कि इस बात की जितनी झुंझलाहट तुम्हें है, उतनी ही पीडा मुझे भी. इसलिये मैं सोचती हूं कि क्या ही हो जो मैं एक किताब में तब्दील हो जाऊं???

तुम पन्ना-पन्ना... हर्फ़-हर्फ़ मुझे पढ डालो. मेरी अनकही उम्मीदों को ज़ुबान मिल जायेगी और मेरे मन का दर्द जब पन्नों पर उकेर दिया जायेगा तो तन के दर्द की तरह ही तुम उसे सहला पाओगे.

मेरी अच्छी बातों को underline करते चलना और गुस्सा आने पर इन बातों को ज़ोर-ज़ोर से खुद को सुनाते हुये पढना फिर भी जब खूब नाराज़ हो जाओ तो बेरुखी से मुझे किसी drawer में बंद कर देना. कभी डांटते हुये कान उमेंठने की जगह वो पन्ना कोने से fold कर दिया करना जहां से आगे तुम मुझे पढना चाहो...

और भले से मेरी तारीफ में अभी जितनी चाहो कंजूसी कर लो मगर तब एक अच्छी किताब के बारे में ढेर सारी अच्छी बातें अपने दोस्तों से कहना और सुनो... ऐसा करते हुये मुझे अपने हाथों में ही रखना. अपनी तारीफ सुन कर जब मैं फूल कर कुप्पा हो जाऊंगी तो आम किताबों से अलग मुझमें कुछ पन्ने और बढ जाया करेंगे. ऐसे सारी उमर तुम बस मुझे पढना... मैं बस तुम्हारे हाथों में रहूंगी.

और अपनी वसीयत में ये लिखना मत भूलना कि मुझे तुमसे कभी अलग ना किया जाये. तुम्हें दफन किया जाये, तो मेरी किस्मत में भी मिट्टी होना लिख दिया जाये... तुम्हें जलाया जाये तो मेरी तकदीर में भी राख में तब्दील होना मुकर्रर किया जाये... मैं तिल-तिल कर मरना नहीं चाहती और तुम्हारे बिना जीना मरने से किसी भी हाल मे बेहतर होगा... ये मानना इस जनम में तो मुमकिन नहीं...

13 comments:

  1. बहुत ही रोमेंटिक...प्यार का एहसास सच में बयां नही किया जा सकता है...पर तुने तो कमाल ही कर दिया बहुत खूबसूरती से पिरोया है इसे...सच में बहुत रोमेंटिक है...

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  2. :) kya ho gaya tujhe... aisa likhegi kya... katl hai katl... :-)

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  3. तुम सोचती भी हो? फिर तो घुटने में बहुत दर्द हो जाता होगा? है ना!! :)

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  4. kya likha hai bhabhi waaah :)
    mujhe aapka collection chahiye pura

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  5. प्रेमिका का पुस्तक बनने का बिम्ब प्रयोग बहुत सुंदर लगा. भावनाओं का जो प्रवाह देखने को मिला उससे प्रेम की पराकाष्ठा परिलक्षित होती है. सुंदर और सम्वेदनाओं से परिपूर्ण रचना. बहुत बधाई.

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    1. sundar post,,,, monali jee... real experience has been turned into words/ visit my blog too ..
      babanpandey.blogspot.com

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  6. बहुत नाज़ुक सी भीनी-भीनी ,बिलकुल बरसात की पहली फुहार सी लगी आपकी रचना .......

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  7. मन के भावो को शब्दों में उतर दिया आपने.... बहुत खुबसूरत.....

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  8. सुन्दर बिम्ब युक्त रचना ..
    यह तो गद्य नहीं कविता है ..

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  9. ये मोहब्बत जो न करवाये कम ही है।

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  10. फिर से एक सांस में पढ़ गया ... बेहद कमाल का लिखा है ...

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