Saturday, January 7, 2012

...तू कहीं भी नहीं


तेरी बातों को हवा में उडा देने की फितरत भी मेरी थी
उन्हीं बातों को हवा से छीन लाने की आदत भी मेरी है

तेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बनने को रब से मिन्नत भी मेरी थी
तेरी यादों के भंवर से उबरने को धागों में मन्नत भी मेरी है

तेरे दिल में अपने लिये मुहब्बत की चाहत भी मेरी थी
तेरे ज़ेहन में खुद के लिये नफरत की हसरत भी मेरी है

तेरे ख़यालों तक को मार डालने की साजिश भी मेरी थी
तुझे ख़यालों में जिलाये रखने की ख्वाहिश भी मेरी है

इश्क़ की दीवारों से घिरी, सिर पटकती वो मूरत भी मेरी थी
ऊंचे किले के दरवाज़ों पर लिखी ये इबादत भी मेरी है

हूं 'मैं ही मैं' हर तरफ...
तेरा नाम-ओ-निशां तक नहीं

फिर भी खुद की तलाश का हर रास्ता ग़र तेरी गली से गुज़रे
तो.. अच्छी या बुरी, जैसी भी सही...

कल की ये हक़ीकत भी मेरी थी,
आज की ये किस्मत भी मेरी है...

27 comments:

  1. तेरी बातों को हवा में उडा देने की फितरत भी मेरी थी
    उन्हीं बातों को हवा से छीन लाने की आदत भी मेरी है... बेचैन मन की हालात बेचैन मन समझ लेता है ....
    मुझे अलग तू
    मेरा मैं भी तू

    ReplyDelete
  2. उम्दा!!! बहुत ही बढ़िया!!!

    ReplyDelete
  3. तेरी बातों को हवा में उडा देने की फितरत भी मेरी थी
    उन्हीं बातों को हवा से छीन लाने की आदत भी मेरी है

    वाह क्या बात है..nice lines..

    ReplyDelete
  4. कल की ये हक़ीकत भी मेरी थी,
    आज की ये किस्मत भी मेरी है...बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

    ReplyDelete
  5. कल की ये हक़ीकत भी मेरी थी,
    आज की ये किस्मत भी मेरी है.
    कल और आज के कशमकश में हकीकत का बयां ..

    ReplyDelete
  6. wah ji kya baat hai...aap hi aap hain to fir problem kya hai ?

    sunder, jabardast abhivyakti.

    ReplyDelete
  7. कल 10/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  8. haqikat ki sundar abhivaykti.........

    ReplyDelete
  9. वाह ...बहुत खूब ।

    ReplyDelete
  10. हूं 'मैं ही मैं' हर तरफ...
    तेरा नाम-ओ-निशां तक नहीं


    ये ही जीवन का कटु सत्य हैं

    ReplyDelete
  11. बहुत प्यारा लिखा है आपने ........

    ReplyDelete
  12. सुंदर भावो से लिखी बेहतरीन अभिव्यक्ती..

    ReplyDelete
  13. बहुत खूब ..अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  14. बहुत खूबसूरत भावाव्यक्ति।

    ReplyDelete
  15. खुबसूरत रचना

    ReplyDelete
  16. बहुत अच्छी..!!
    kalamdaan.blogspot.com

    ReplyDelete
  17. बहुत खूब... खूबसूरत रचना

    ReplyDelete
  18. तेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बनने को रब से मिन्नत भी मेरी थी
    तेरी यादों के भंवर से उबरने को धागों में मन्नत भी मेरी है

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

    ReplyDelete
  19. bahut sundar monali ji har pankti khubsurat hai....

    ReplyDelete
  20. मोनाली जी नमस्ते !
    जो साकार हो वो ही हकीकत बाकी सब अफसाने कहे जाते हैं ...पर क्या किया जाए
    आंतरिक द्वन्द को शब्दों में खूब पिरोया है आपने ...
    मकर सक्रांति पर्व की अग्रिम शुभकामनाएं ... प्रदीप

    ReplyDelete
  21. बेहद खूबसूरत...

    ReplyDelete
  22. तेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बनने को रब से मिन्नत भी मेरी थी
    तेरी यादों के भंवर से उबरने को धागों में मन्नत भी मेरी है

    वाह, बहुत खूब!

    ReplyDelete
  23. Bewafai aur wafadari pyar mai dono k liye dukhdai hote hai chit bhi mera aur pat bhi mera ...... Aapki rachana achi hai magar ye khyalat ek ache inshaan k nahi ho sakte bura na maniye ham to yahi sochte hai ya to sath do ya saaph na kah do aapki vajha se doosre ko takliph na ho to acha hai

    ReplyDelete
  24. बहुत खूब ... गहरा एहसास लिए ...

    ReplyDelete
  25. बहुत खूब... खूब अच्छी लगी यह नज़्म

    ReplyDelete
  26. सुभान अल्लाह मोनाली !!!!

    "कल की ये हकीकत भी मेरी थी
    आज की ये किस्मत भी मेरी है"

    उफ्फ्फ यार कमाल की बात कही है !!!!

    जियो यार !!!

    ReplyDelete
  27. इश्क़ की दीवारों से घिरी, सिर पटकती वो मूरत भी मेरी थी
    ऊंचे किले के दरवाज़ों पर लिखी ये इबादत भी मेरी है!

    ghazal ka urooz hai ye sher. bahut khoob. once again welcome to my blog www.utkarsh-meyar.blogspot.com

    ReplyDelete