Thursday, September 30, 2010

उसे बख्श देना...


मैं तुम पर बिगडा करती हूं कि...
मेरी किस्मत में उसका नाम नहीं लिखा
कि उसका हाथ मेरे हाथों में नहीं दिया
कि उसकी सांसों से मेरे जीवन की डोर नहीं बांधी
कि उसका साथ मुझे नहीं बख्शा

लेकिन ये सब कहते हुये,
शायद मैं ये भूल जाती हूं...
कि उसका नाम मेरी दुआओं में शामिल ही कहां था?
उसको मैंने मांगा ही कब था?

मैंने तो बस उसके चेहरे पर हंसी मांगी थी
उसकी राहों में फूलों की आरज़ू की थी
उस से जुडे हर शख्स के लिये रौनक चाही थी
और मांगी थी...
उसके लिये ऐसी ज़िन्दगी कि लोग हसद करें

और ये सब तुम उसे दोगे... जनती हूं मैं
वरना...
उसे पाने की खातिर नहीं, लेकिन...
उसकी खुशियों के लिये तो... तुमसे झगड ही पडूंगी...

15 comments:

  1. gahare dard kaa ehsaas karaati maarmik kavita..

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  2. waah kya prem bhaw liye hai yeh rachna....
    ummeed hai bhagwaan aapki pukar jaroor sunega...
    usko na maangkar uski khushiyaan maangi...waah...
    bahut khub...

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  3. जद्दोजहद की यह स्थिति ..
    वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. बहुत सुन्दर रचना...

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  5. वाह्……………निस्वार्थ प्रेम ऐसा ही होता है।

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  6. बहुत खूबसूरत ....नि:स्वाएथ प्रेम की अनूठी अभिव्यक्ति

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  7. aapki yah rachna padhkar dil se jo shabd nikla
    vo tha---Wah-wah,bahut sundar.
    poonam

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  8. निस्वार्थ प्रेम की बहुत उदात्त भावनाएं...दिल को छू लिया...आभार..

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  9. वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.

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  10. apni khushiyon ke liye hi sahi yah rachna 'vatvriksh' ke liye bhejen parichay aur tasweer ke saath rasprabha@gmail.com per

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  11. सुन्दर अभिव्यक्ति. मन को छू गयी.

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  12. अबे तेरे की!
    राम जी से झगडा, बोले तो डायरेक्ट पंगा!
    बढ़िया है!
    सब ठीक हो जाएगा!
    खुश रहने का!
    आशीष

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  13. I understood each & every word Monali ji !!!
    Really awesome !!

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  14. sch me pyar yahi hota hai....congrates for this btfl poem....agar ijazt ho to apki kuchh kavitaen punjabi me anuvad karna chahunga.....

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