Thursday, July 15, 2010

पराजित प्रयास



अब से कोशिश करूंगी तुझे भूल जाने की
क्योंकि रंग लाती नहीं दिख्ती कोई कोशिश संग घर बसाने की

चंद दिनों के आंसू और एक उमर का दर्द्
नहीं कोई बडी कीमत इश्क़ की नेमत पाने की

दीवारों से सिर पटके तू गवारा नहीं मुझे
और मुझमें हिम्मत नहीं दीवारें तोड आने की

दिल की दौलत लगती दो कौडी की
जब होती बात खज़ाने की

मेरा जीवन मुझसे ज़्यादा जी कर भी वो कहते हैं
नहीं सुनेगी बात हमारी ये फसल नये ज़माने की

तू भी मुझको याद ना करना
जान कीमती बर्बाद ना करना

ज़िन्दगी का क्या है? कट जायेगी...
या तो अल्हड नदिया सी या फिर ठहरे पानी सी

13 comments:

  1. शानदार पोस्ट

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  2. दीवारों पर सिर पटके तू गंवारा नहीं मुझे
    और मुझमें हिम्मत नहीं दीवार तोड़ आने की
    शायद यही हिम्मत है जो दम तोड़ रही है और न जाने कितने अरमानों को दम तोड़ना पड़्ता है
    बहुत खूबसूरती से आपने बात कही है
    बहुत सुन्दर रचना

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  3. कविता बेशक अच्छी है! एक पराजित प्रयास.....
    'याद ना करना' से मैं सहमत नहीं!
    आपकी इजाज़त से:
    लम्हा
    लम्हा-लम्हा बनता जीवन,
    इस जीवन में कुछ लम्हे हैं!
    इन लम्हों में से कुछ लम्हे,
    तेरे-मेरे संग गुज़रे हैं!
    इन लम्हों को तू हर लम्हा,
    अपने संग संजो कर रखना!
    जाने जीवन के किस लम्हे में,
    तुझको मेरी याद आ जाए!
    जिस लम्हे में मेरी याद आये,
    उस लम्हे में ग़म मत करना!
    मुस्का देना उस लम्हे में,
    आँखों को तू नम मत करना!

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  4. जिन्दगी क्या है? कट जायेगी...बहुत खूब...बेहतरीन!!

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  5. वाह जी ! सुन्दर भावनात्मक रचना है !

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  6. दीवारों से सिर पटके तू गवारा नहीं मुझे
    और मुझमें हिम्मत नहीं है दीवारें तोड़ आने की

    सीधी सच्ची दो टूक बात ,न लाग न लपेट ..यह दिल तोड़ना नहीं है..साफ़गोई है ; जिसका असर कभी नहीं जाता और जो इश्कवाले है ,वे आह भर कर प्यार से यही कहते हैं :-

    कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी ?
    यूं ही कोई बेवफ़ा नही होता

    तसलीम मोनाली... बहुत खूब

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  7. दीवारों से सिर पटके तू गवारा नहीं मुझे
    और मुझमें हिम्मत नहीं है दीवारें तोड़ आने की

    सीधी सच्ची दो टूक बात ,न लाग न लपेट ..यह दिल तोड़ना नहीं है..साफ़गोई है ; जिसका असर कभी नहीं जाता और जो इश्कवाले है ,वे आह भर कर प्यार से यही कहते हैं :-

    कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी ?
    यूं ही कोई बेवफ़ा नही होता

    तसलीम मोनाली... बहुत खूब

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  8. ज़िन्दगी क्या है कट जाएगी....कई बार कहना आसान होता है लेकिन काटना मुश्किल...बहुत अच्छी रचना है आपकी...लिखती रहें...
    नीरज

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  9. मन के दर्द को बखूबी लिखा है....

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  10. बहुत खूब ... कमाल के शेर हैं ... दीवार तोड़ कर आना सच में आसान नही होता ...
    उम्दा ग़ज़ल है ...

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  11. ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए
    इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

    जीवन के सबसे सरल होते हुए कठिन विषय पर आपने कलम चला डाली है. कोई हल निकालिए
    सिर झुकाए बैठी हुई कोई भी लड़की मुझे निजी तौर पर अच्छी नहीं लगती.
    बाकी रचना शानदार है.

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  12. बहुत ही सुन्दर पहली दो पंक्तियाँ कमाल की है.

    अब से कोशिश करुँगी तुझे भूल जाने की
    रंग लाती नहीं दिखती उम्मीद घर बसाने की... भाव बेहद गहरे हैं एक सीधी सच्ची बात कितनी अनमोल लगती है. ग़ज़ल की तकनीक से अलग और अनुभूति के स्तर पर लाजवाब रचना है

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  13. लेकिन भूलने में मोनाली शायद ज़माना लगे..

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