
मैं खुद से ही दूर होती गई
खुद ही जाने क्यूं खोती गई
तुझे जीतने की यूं ख्वहिश जगी
मैं तुझमे ही खुद को डुबोती गई
तेरी भोर से आखें मेरी खुली
तेरी रात से मेरी पलकें मुंदी
तेरी खुशी से लब खिल उठे
तेरे दर्द में ये नैना झरे
मैं तुझमें ही गुम होती गई
मैं खुद से ही दूर होती गई
मैं तेरे इशारों पर चलती रही
तुझको ठोकर लगी,मैं संभलती रही
अपनी खुशी तो ना देखी कभी
मैं तेरे लिये ही बिखरती रही
मैं तुझमें ही गुम होती गई
मैं खुद से ही दूर होती गई
सब पूछें क्या पाया, क्या खोया मैने?
किसकी खातिर हर सपना है धोया मैंने?
कुछ खो कर है पाया, पा कर कुछ खो दिया
बस तेरे लिये नहीं ग़म बोया मैंने
हर विरासत तेरी संभालने के लिये
मैं कंटकों से हंस के गुजरती गई
कर्तव्य की पगडण्डी पर चलते हुये
'मोनाली' हर पल न्यौछावर होती गई
तेरी इक प्यार भरी मुस्कान को
तेरी जुबां को और तेरे सम्मान को
मैं अपनी खुदी को ही खोती गई
मैं तुझमें ही गुम होती गई
मैं खुद से ही दूर होती गई