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हर कही अनकही जीनी होगी, सोचा ना था
ये बातें कडवी पीनी होंगी, सोचा ना था
रिश्तों की जिस चादर को ओढ़ॅ, महफू समझते थे खुद को
वो चादर इतनी झीनी होगी, सोचा ना था
जीवन पर अपना वश ना होगा, सोचा ना था
रिश्तों में कोई रस ना होगा, सोचा ना था
जब खुशियां बांटते चलते थे, तब नही किसी ने समझाया
हिस्से में खुशियां थोडी होंगी, सोचा ना था
सब संगी साथी छोड़ने होंगे, सोचा ना था
नाते अप्नों से तोडने होंगे, सोचा ना था
गैरों की जिस महफिल में अजनबी-से लगते थे चेहरे
अब इन्हीं अजनबी चेहरों में फिर से अप्ने खोजने होंगे, सोचा ना था
सब हमसे ऐसे रूठेंगे, सोचा ना था
हम भीड में तन्हा खडे रहेंगे, सोचा ना था
हम तो सोचे बैठे थे, उम्र भर की पूंजी जमा हुयी
रिश्ते भी डाल के ताले तिजोरियों में भरने होंगे, सोचा ना था