Sunday, November 27, 2011

सुनो ना...


तुम जब खुद में बेहद.. माने कि हर हद के बाहर जा कर मशगूल हो जाते हो ना तब मैं भी खुद में खो जाने की कोशिश करने लगती हूं. मेरी पसंदीदा किताबें shelf से बाहर आ जाती हैं... रसोई में होने वाले खतरनाक किस्म के experiments काम वाली बाई को डराने लगते हैं.. playlist से जाने कितने ही गानों को बिना कुसूर के निकाला दे दिया जाता है.. साफ सुथरी मेजों को इतना घिसा जाता है कि बेचारी मेजों को भी लगने लगता है कि आज उनके चेहरे की रंगत बदल के ही रहेगी... सोने की नाकाम कोशिशें की जाती हैं; सपने तकिये के सिरहाने से झांकते रहते हैं और घण्टों मेरी खुली आखों को देखने के बाद थक कर सोने चले जाते हैं.

मगर सब फिज़ूल.... किताबों में तुम्हारी बातें हैं मगर तुम्हारा नाम नहीं... हर dish जब कढाही में कुनमुनाते हुये पूछती है कि मैं "पिया जी" को भाऊंगी या नहीं तो सच मानो मैं गुस्से से जल भुन कर खाक हो जाती हूं और मेरे बाद उसकी भी यही गति होती है. कुछ गानों को इस खुन्नस में सुनने का मन नहीं होता कि कभी तुमने गाये थे और कुछ पर इस बात का गुस्सा निकलता है कि तुमने क्यूं नहीं गाया उन्हें? सपनों से भी तो इस बात की ही तकरार है कि वो अकेले ही चले आते हैं, उनसे भी तुम्हें खींच कर लाये नहीं बनता.

उफ्!! तुम मुझ पर इस कदर हावी हो चुके हो कि तुम्हारे शहर और मेरे बीच की दूरी को नापते मील के पत्थर मुझे उन रास्तों पर भी दिख जाते हैं जो तुम्हारे शहर को जाते ही नहीं.

लेकिन तुम्हारे साथ ऐसा नहीं है ना? तुम्हें तो उन रास्तों पर चलते हुये भी अब मेरा ख़याल नहीं आता जिन पर मेरा पांव फिसलने पर तुम आखिरी बार जी खोल कर हंसे थे. सच ही... जितनी मेरी ज़िन्दगी तुम्हारे बिना बेमानी है, शायद उतनी ही मेरी मौजूदगी तुम्हारे लिये बेमतलब.

कई मर्तबा यूं भी सोचा कि चलो बहुत दिन हुये ज़िन्दगी-ज़िन्दगी खेलते हुये.. अब मौत को मौका दिया जाये. आसान मौत के तरीके भी ढूंढे इसलिये नहीं कि डर है... बस इसलिये कि उस ज़िन्दगी को ज़्यादा तकलीफ नहीं देना चाहती कि जिसने मुझे तुमसे मिलाया.

मरने का इरादा कर के एक आखिरी बार (और ये आखिरी बार कई-कई बार हुआ) तुम्हारे कमरे की चौखट तक गई मगर फिर.. तुमने खाना नहीं खाया या सर्दी में बिना स्वेटर के बैठे हो जैसी बातों में यूं उलझी कि मरने का ख़याल कमरे की देहरी पर ही मर गया.

एक बात बताऊं?
मैं मरना भी इसलिये चाहती हूं कि देखूं कि तुम मेरी याद में मेरी तस्वीरों को सहलाओगे या नहीं? भोर से अपने तकिये पर टंके आसूं छिपाओगे या नहीं? और मर भी इसीलिये नहीं पाती कि कहीं ये सब ना हुआ तो मेरे जीने की तरह मेरा मरना भी ज़ाया हो जायेगा.

इसलिये आज के लिये मैं ये कविता लिख कर ज़िन्दगी.. मौत... मेरे-तुम्हारे सपनों सब के साथ settlement कर लेती हूं....




मर जाने की ख्वाहिश अब भी मरी नहीं ...
मगर सोचती हूं कि शायद मेरी कमी खले अब तुझे...
बस इस आस में;
मरने से पहले तेरे कमरे की देहरी से झांक जाती हूं..
और तू खुद में मशगूल इतना कि,
ना मेरी ज़रूरत न ज़ेहन में मेरा ख़याल ही है...
बस इस सोच में घुलती हूं औ तुझे मालूम भी नहीं होता
मैं तेरी नज़र के सामने हो कर भी.. हर पल थोडा-सा और गुम हो जाती हूं...
लोगों को लगता है कि जीने के बहाने मरने की मोहलत नहीं देते,
उन्हें क्या ही मालूम?
कि किस पल में मैं सदियां जी जाती हूं और...
किस पल में सांसें ले कर भी कई मौत मर जाती हूं...

13 comments:

  1. मौत में भी जीवन के पल... और जीवन में भी मौत के सन्नाटे महसूस हों आयें... कुछ ऐसी काव्यात्मक पोस्ट है यह!

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  2. Namaskaar ji...

    Unki ek nazar ki khatir..
    aakhir kyon marna chaho..
    Unhen shikayat kar do saari..
    jo bhi tum karna chaho..

    Baaton se baatain niklengi..
    Bhav mukhar ho jayenge..
    Tere meethi baatain saari..
    Sajan ko mahkayengi..

    Bhale jatata na hoga wo..
    Pyaar magar wo karta hoga..
    Tere jaisa pyaar wo tujhse,
    Man hi man main, marta hoga..

    Sabhi kahan sabko tujh sa hi..
    Man ki baat batate hain..
    Jeevan bhar wo sath nibhate..
    Kahne se katraate hain..

    Dushman bhi na maren tumhare..
    Tum saari khushiyan paao..
    Swpn tere pure hon saare..
    Sajan ke sang muskao..

    Marne ki baatain to saare,
    bujhdil, kayar karte hain.
    Par na maut saral hai etni..
    Jitna log samajhte hain..

    Man ke haare haar hai hoti..
    Man ke jeeete, jeet..
    Priyatam ke sang pyaar jatao..
    Tum bhi gao pyaar ke geet..

    Jeene ki jitna sochenge..
    Jeevan utna madhur lage..
    Jeevan path ki raah kathin ho..
    Sahaj sada sabko hi lage..

    Nirasha taj den...aur marne ki katai na sochen... Sada khush rahen...

    Deepak Shukla..

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  3. Baap re.......... ! Ye post to IPC ki dhara 302 lagawane waali hai. :)

    Jokes apart ! behad sanjeeda aur tees bhari post !

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  4. तुम मुझ पर इस कदर हावी हो चुके हो कि तुम्हारे शहर और मेरे बीच की दूरी को नापते मील के पत्थर मुझे उन रास्तों पर भी दिख जाते हैं जो तुम्हारे शहर को जाते ही नहीं.
    .....

    मर जाने की ख्वाहिश अब भी मरी नहीं ...
    मगर सोचती हूं कि शायद मेरी कमी खले अब तुझे...
    बस इस आस में;
    मरने से पहले तेरे कमरे की देहरी से झांक जाती हूं.... nihshabd karte ehsaas

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  5. इतना भी निराश न होइये!

    -----
    कल 29/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. monali ek baar aapne kaha tha hamare khyaal milte hain....par aaj main kahti hu hamare khyaal to milte hi hai par aaj aapne jo likha hai wo meri jindagi se kafi milta julta sa hai...aisa lagta hai raat bhar bethkar ek kone me do saheliyon ne khood batein ki ho aur fir ek ne dusri ki kahani ko pannon par utaar diya....

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  7. This comment has been removed by a blog administrator.

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  8. अगर चुनाव का मौका मिले ,तो ज़िन्दगी को चुनना चाहिये ..... नि:शब्द करती अभिव्यक्ति !

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी..। पढ़ना बहुत अच्छा लगा.।
    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,। धन्यवाद ।

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  10. ऐसे पोस्ट्स पर कुछ भी कह पाना मेरे लिए बड़ा मुश्किल हो जाता है!

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  11. जिंदगी जीने के लिए है, मरने के लिए नहीं।

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  12. भाग दौड के इस भौतिक वादी संसार में हमने अपनी आवश्यकताएं इतनी बड़ा ली हैं कि मन भीड़ में भी बहुत अकेला है...फिर भे जिंदगी बहुत सुन्दर है ..किसीको प्रेम करके जीवन को जीना भी
    बेहद सुन्दर है ..प्रेम में अभाव का अहसास ..प्रेम के ही प्रतीक है ..जीवन ही है.....हार्दिक शुभ कामनायें ..

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