Friday, November 18, 2011
तुम्हारे ख़यालों के झूले पर मेरी सोच की पींगें...
मातम मनाऊं कि तुम्हें ना मेरी फिक्र, न ज़रूरत, ना चाहत या कि फ़ख्र करूं कि कुछ लम्हों को ही सही मगर तुमने मुझे टूट कर चाहा था और मैं मुतमईन हूं ये सोच कर कि उन चंद लम्हों में मेरे सिवा किसी का ख़याल तक नहीं आया था तुम्हें...
एक और शाम अपनी उदासी और तुम्हारी याद की date plan करने में बर्बाद कर दूं कि अब वो पल तुम्हें एक पल को भी याद नहीं आते या कि बगिया की चिडिया को उससे भी ज़्यादा चहक कर बताऊं कि कल रात तुम्हारा sms आया था. माने कि तुम मुझे नहीं भूले, बस वो लम्हे मिटा दिये हैं अपनी memory से...
चिढ कर, सबसे झगड कर खुद को कमरे में बंद कर के ये सोचूं कि क्यूं तुम मुझे इतना नासमझ समझते हो कि कभी कोई हंसी या कोई आंसू साझा नहीं करते या कि तुम्हारी लिखी इस बात का printout बिस्तर की सामने वाली दीवर पर चस्पा कर दूं कि; "ऐसा सोचते हुये तुम अकेली नहीं होतीं" जाने ये कहते हुये तुमने मेरी कौन सी सोच के बारे में सोचा होगा!!! ये सोच कर ही मैं मुस्कुरा देती हूं.
क्या करूं और क्या ना करूं जैसे कितने ही असमंजसों के बीच झूलती मैं जाने कौन-कौन से काम निबटाये जा रही हूं.और देखो तो... ये क्या किया मैं ने अपनी बेख़याली में...
तुम्हारी image पर छाई गर्द मैंने अपने उजले दुपट्टे से साफ कर दी है. तुम्हारे लिए ऐसा करने को मेरा भविष्य किस निगाह से देखेगा ये तो नहीं पता मगर मेरे-तुम्हारे अतीत से मेरे 'वर्तमान' ने कभी नफरत नहीं की है... जानते हो ना तुम???
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तुम्हें सोच कर..
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सोच की पींगे ऐसी ही होती हैं...कभी ऊपर तो कभी नीचे...लेकिन आनंद दोनों में आता है
ReplyDeleteनीरज
डायरीनुमा पन्ने खुद से बातें करते हैं ... होता है, बिल्कुल ऐसा होता है
ReplyDelete:) kya kahoon kuch samajh nahi aa raha.... meri sangat ka thoda asar dikh raha hai... :P
ReplyDeleteकभी कभी एक सोच इंसान को अकेला नहीं होने देती...और बाकी तो तुमने ऊपर लिख ही दिया है...
ReplyDeleteगज़ब की बातें .. खुद से भी बोलना जैसे कोई फेंटेसी सी बुनी जा रही हो ... कमाल का लिखा है ...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - रोज़ ना भी सही पर आप पढ़ते रहेंगे - ब्लॉग बुलेटिन
ReplyDeleteडायरी के पन्ने सोच को एक नया आयाम देते हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़ कर।
सादर
डायरी के पन्ने पे अपने मन की उलझन उकेर दी आपने.....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से लिखी है ये पोस्ट ..दिल से निकली हुई ..
ReplyDeleteयादों की दुनिया में विचरना दिल को सुकून देता है।
ReplyDeleteसुंदर लेखन।
सुंदरता से भाव बह आये हैं पन्नों पर...!
ReplyDeleteHi.
ReplyDeletePriyatam jiske door hain jaate..
Har pal yaad unhen wo aate..
Man ke jhule main peenge ban..
Bade pyaar se use hilaate..
Yaad hain aati saari baatain,..
Hanste din, wo jagti raatain..
Hothon par muskaan madbhari..
Aankhon main badal wo laate..
Apne priyatam ki ek ek baat yaad aana swabbhavik hai.. Aapne bahut hi sundar shabdon main man ki uhapoh ko engit kiya hai..
Shubhkamnayen..
Deepak Shukla..
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteआपकी ये डायरी किसी दूसरी दुनिया में खींच के ले जाती है ...
ReplyDeleteअच्छा लिखा है एक एक शब्द ऐसे लग रहे है मानो सीधे ह्रदय से ही निकल के आ रहे हो|
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो इस नाचीज़ के ब्लॉग पर भी तशरीफ़ ले आएये......
पता है...
http://teraintajar.blogspot.com/