Wednesday, August 24, 2011

ग्लानि


डिगता नहीं एतबार एक पल को भी तुमसे
बस खुद पर ही भरोसा कभी मुक्कमल नहीं होता
तुम हर घडी हर दौर क सहारा बने रहे
मरीचिका के पीछे पडा मेरा ही मन मेरा संबल नहीं होता

भले खुद को दे दूं ये दिलासा कि तुमसे कुछ नहीं छिपाया
मगर ये भी तो सच है कि बतान जैसा कुछ नहीं बताया
एक ही थी गलती दोनों की पर थोप दी तुम पर
प्रेम पा कर भी मेरा मन उज्जवल नहीं होता

तुम्हें पा कर सोचती हूं क्या लायक हूं तुम्हारे
मैं रेत्. तुम सागर्. शायद इसीलिये घुल गये किनारे
अम्रित पा कर भी विष की तृष्णा नहीं मरती
तुझसे वंदित हो कर भी मन निर्मल नहीं हुआ

हर रोज़ बस ये मांगती हूं खुद से और खुदा से
बख्शे मुझे मोती इबादत और वफ़ा के
ये भी नहीं कि पतित हुई मैं ज़माने के रिवाज़ से
मगर जाने क्यूं... गंगोत्री से जनम कर भी मेरा मन गंगाजल नहीं हुआ

21 comments:

  1. awesome..........
    touched really
    aakhiri lyn itni achhi hai k bas kya kaha jaaye
    bahut achha likha hai

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  2. jeevan ki har raah par, jab tum tanha hoti ho
    sapno se dar kar, jab tum ghabra jati ho
    mein hoti hun sath tumhare, fir kyun tanha hoti ho

    .............mother always with child...

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  3. bahut bahut accha likha hai,har pankti bahut acchi hai

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  4. बहुत अच्छा लिख्ती हैं आप. बहुत गहरे भाव भर दिये हैं इस रचना में

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  5. Awesome composition... Monali i never knew d poetic talent of urs... Hats off..

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  6. Thnx ol... n,..
    @Anonymous.. pls reveal ur name.. i wud love to knw ur name as m sure dat i knw u :)

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  7. मैं रेत. तुम सागर. शायद इसीलिये घुल गये किनारे...

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  8. अतयंत ही भाव-प्रवण रचना.

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  9. तुम्हें पा कर सोचती हूं क्या लायक हूं तुम्हारे
    मैं रेत्. तुम सागर्. शायद इसीलिये घुल गये किनारे
    अम्रित पा कर भी विष की तृष्णा नहीं मरती
    तुझसे वंदित हो कर भी मन निर्मल नहीं हुआ


    खूबसूरती से लिखे हैं भाव .. अच्छी प्रस्तुति

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  10. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  11. इस तरह की ग्लानि जीवन भर को असहज कर देती है.
    भावनाए मन को छू लेती है.
    यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
    अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

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  12. सुन्दर रचना ....

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  13. ईमानदारी महसूस होती है ........
    हार्दिक शुभकामनायें !

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  14. पढ़ी-लिखी कविता. आर्ट मूवी टाईप! अच्छी ही होगी! हा हा हा...
    आशीष

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  15. मगर जाने क्यूं... गंगोत्री से जनम कर भी मेरा मन गंगाजल नहीं हुआ
    इस एक पंक्ति ने ही पूरे दर्द को समेट लिया है !
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

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  16. अच्छी लगी ये कविता. मन कहीं खो गया

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  17. विरोधाभासी युग्मों का बड़ा ही खूबसूरती से प्रयोग कर मूल अभिव्यक्ति पर मन केंद्रित करने में आपकी कलम सफल रही. बधाई.

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