Friday, September 2, 2011
बारिश का इन्तज़ार...
एक दिन लडकी के बाप ने कहा, "बच्चे जब पहले-पहल बोलना शुरू करते हैं तो मां-बाप हर शब्द .. हर बात पर कितना खुश होते हैं... कितना हंसते हैं. और फिर वही बच्चे जब बडे हो कर बोलते हैं तो मां-बाप के पास सिवाय आंसुओं और दुःख के कुछ नहीं रह जाता."
लडकी भी भोली-भाली... पुरानी हिन्दी फिल्मों की नायिका जैसी नहीं थी. तडक कर जवाब दिया, "जो बच्चे मां-बाप को अपनी मासूमियत के चलते इतने हंसी.. इतने गर्व के पल मुफ्त दे जाते हैं, उनकी खुशी का वक़्त आने पर मां-बाप तकाज़ा क्यूं करने लगते हैं? अगर उनकी खुशियां भीख के तौर पर झोली में डाल भी दें तो उस झोली को तानों से इस कदर छलनी कर देते हैं कि सारी खुशियां छन जाती हैं और सिवाय फटी खाली झोली के कुछ नहीं रहता."
उस रोज़ के के बाद से बाप-बेटी के बीच सन्नाटे का एक लम्बा रेगिस्तान पसरा हुआ है. दो-चार शब्दों के फूल जाने खिलते भी हैं या ये बी रेगिस्तान में भ्रम सी कोई मरीचिका है. हां, कडवाहट के बवंण्डर अक्सर उठा करते हैं.
उस रोज़ के बाद से लडकी रेत की तरह जल रही है और बाप सूरज की तरह तप रहा है. दोनों बारिश की किसी फुहार के इन्त्ज़ार मे हैं. क्योंकि दोनों अब थक गये हैं और दोनों को ही ठन्डक की आस है... दोनों कुछ देर सुस्ताना चाहते हैं. इस गर्मी.. इस जलन से राहत पाने के लिये बारिश से सीली हवा की नमी को अपनी सांसों में भर लेना चाहते हैं. दोनों बारिश की एक फुहार के इन्तज़ार में हैं...
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"उस रोज़ के बाद से लडकी रेत की तरह जल रही है और बाप सूरज की तरह तप रहा है. दोनों बारिश की किसी फुहार के इन्त्ज़ार मे हैं. क्योंकि दोनों अब थक गये हैं और दोनों को ही ठन्डक की आस है"
ReplyDeleteमाँ-बाप ने बच्चों से ज़्यादा दुनिया देखी होती है बेहतर हो यदि उनके प्रति हमारा सम्मान उन से कई बार असहमत होने पर भी बना रहे।
बात दोनों की ही अपनी अपनी जगह ठीक है । बेहतर होगा अगर वह लड़की ही अपने पिता से फिर संवाद की पहल करे क्योंकि वह तो छोटी है ही।
सादर
MAIN TERI BAHUT BADI FAN HU MONU...
ReplyDeleteAlthough maine aj tak tere mann k jharoke main jhak ke ni dekha...
Still m ur big fan..... love u
अजीब स्थिति है .. ठंडी फुहार के लिए खुद के मन से झरना बहाना होगा .. विचार करने योग्य प्रस्तुति
ReplyDeleteसंवाद हर अवसाद मिटा देता है।
ReplyDeletesannate kee aag bahut tapati hai...
ReplyDeleteमार्मिक !
ReplyDeleteसमझ की बारिशें... खूब बरसानी चाहिए.
कटाक्ष जीवन में अन्धकार ही देता है ....
ReplyDeleteक्षमा बडन को चाहिए ....यही कहावत याद आ रही है ...या ...बड़ा हुआ तो क्या हुआ ...जैसे पेड़ खजूर ...बड़ा होने से ज्यादा ज़रूरी बड़ा बनाना है ...बड़प्पन समझाना है ...
गहन चिंतन देती हुई सार्थक पोस्ट...
"बच्चे जब पहले-पहल बोलना शुरू करते हैं तो मां-बाप हर शब्द .. हर बात पर कितना खुश होते हैं... कितना हंसते हैं. और फिर वही बच्चे जब बडे हो कर बोलते हैं तो मां-बाप के पास सिवाय आंसुओं और दुःख के कुछ नहीं रह जाता."
ReplyDeleteउस रोज़ के के बाद से बाप-बेटी के बीच सन्नाटे का एक लम्बा रेगिस्तान पसरा हुआ है.लडकी रेत की तरह जल रही है और बाप सूरज की तरह तप रहा है. दोनों बारिश की किसी फुहार के इन्त्ज़ार मे हैं. क्योंकि दोनों अब थक गये हैं और दोनों को ही ठन्डक की आस है...
मेरे किस्से में मां और बेटी है और मैं समस्या के अलाव में कूदकर अंगारे नहीं बिखराना चाहता हूं। मैं इंतजार हूं कि अहं की लड़ाई में मध्यस्थ की जरूरत न पड़ें।
समसामयिक लेख हे विचारोत्तेजक
समसामयिक और सार्थक लेख... विचार करने योग्य प्रस्तुति.....
ReplyDeleteगहन भावों का समावेश ।
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ReplyDelete♥
प्रिय मोनाली जी
सस्नेहाभिवादन !
लडकी रेत की तरह जल रही है और बाप सूरज की तरह तप रहा है. दोनों बारिश की किसी फुहार के इंतज़ार मे हैं. क्योंकि दोनों अब थक गये हैं और दोनों को ही ठंडक की आस है... दोनों कुछ देर सुस्ताना चाहते हैं. इस गर्मी.. इस जलन से राहत पाने के लिये बारिश से सीली हवा की नमी को अपनी सांसों में भर लेना चाहते हैं. दोनों बारिश की एक फुहार के इंतज़ार में हैं...
नव भाव बोध की सुंदर लघुकथा के लिए आभार और बधाई स्वीकार करें !
दरअस्ल पीढ़ियों का अंतराल पाटने के लिए दोनों ओर से अधिक सजग और उदार होने की आवश्यकता है ।
एक बात और ग़ौर करने की है
जो मां-बाप नन्हे बच्चे को बोलना सिखाते हैं ,
वही बच्चा बड़ा हो-कर मां-बाप को चुप रहना सिखाता है !
यहां किसका दायित्व विशेष बनता है ?
विनोद के लिए काम में लिये जाने वाले इस कथन में छुपी पीड़ा का सच महसूस करके इस ओर कुछ किया नहीं जाना चाहिए ?
चलते चलते…
बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अपना सूरज, अपना रेत...
ReplyDeleteजब शाश्वतता से दूर विनयविहीन सत्य आपस में टकराते हैं तो रेगिस्तान ही बनाते हैं... जहां बारिश कम और धधकते तूफ़ान जादा उठते हैं...
ऐसे ही द्वन्द से उपजे मरुभूमी को आपने सार्थकता से चित्रित किया है...
सादर...
really....we have to ponder deeply ...
ReplyDeleteBeautifully crafted, tightly knitted and well penned.
ReplyDeleteThnx for the visit to ANTARMANNN!!!
अब क्या कहूँ ... सोच रही हूँ. इतनी जरा सी कहानी और इतना कुछ.सब कुछ तो खुद ही कह देती हो हमारे लिए तो कुछ बचा ही नहीं है सिवाय एक मौन के
ReplyDeleteआभार
बहुत सुन्दर कविता..
ReplyDeleteरिदम, लैरिक, भाव, बिम्ब सबकुछ तो है इस गद्य में.
धन्यवाद.
im ur big fan....
ReplyDeletekeep writinng such thoughts.
Good Luck,.
Bahut saare imotions hain is prose me... But matlab samajh nahi aaya... shayad communication gap hai... ya communication kuchh jyaadi hi honay laga hai...
ReplyDeleteइसे चिराग क्यों कहते हो?
जब आग दोनों ने खुद ही लगाई है,तो बरसात की फुहार
ReplyDeleteके लिए भी तो मधुर मीठे छन याद कर कड़वाहट को
विस्मृत करना होगा,प्रेम ,सौहार्द और त्याग से.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,मोनाली जी.
मेरे ब्लॉग पर भी आना जाना बनाये रखियेगा.
हर परिवार की यही कहानी है।
ReplyDeleteआपने पीढ़ियों के द्वंद्व को लघुकथा के माध्यम से जीवंत कर दिया है।
स्पष्ट संदेश देती हुई प्रस्तुति।
क्या बात है....दोनों ही सही..दोनों ही अहं के मारे...तू झूके कि मैं झूकूं....यही इंतजार..तभी तो कहते हैं कि दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिए....हाथ मिलेंगे तो दिल मिलेंगे भी..पर बेहतर है कि दिल के गुब्बार को न मिलाएं..बीती बात पर धूल उड़ाते चलें...वरना जीवन नर्क बन जाता है....जाहिर है कि प्यार दोनो के दिल में है..।
ReplyDeleteसार्थक राह दिखाती पोस्ट। बधाई।
ReplyDelete------
क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
सही कहा दोनों को बारिश की फुहारों का इन्तज़ार है । पहल तो करनी ही होगी अच्छा होगा यदि बापूजी करें वे बडे जो हैं । सुंदर प्रेरक कथा ।
ReplyDeletekya baat hai
ReplyDeleteghar gahr ki yahi kahani hai
generation gap
koi kisi ko nahi samajhna chahta
par h\jarurat ahi iss khaai ko paatne ki
Very nice post. :)
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