Friday, August 19, 2011
बयार परिवर्तन की
आज मेरी कलम ने नम आंख नहीं लिखी
आज स्याही में कोई याद नहीं लिखी
आज उलझनों से पन्ने नहीं भरे
आज लेखनी ने नहीं किये ज़ख़्म हरे
कि आज जब लगी है आग सारे देश में
कि जब जन जन हुंकार भरे क्रांतिकारी वेष में
कि जब संसद की सर्वोच्चता सडकों पर आ जाये
कि जब फौलाद-से इरादे नभ तक पर छा जाये
कि जब बारिश ना भिगो पाये किसी जन का जज़्बा
कि जब अंधेरे में हाथ पकड कोई दिखा दे नई राह
तब मेरी कलम ने प्रेम के तराने नहीं लिखे
आज स्याही में वफ़ा के फसाने नहीं लिखे
कि जब बरसों से पकता कोई फोडा अचानक फूट जाये
कि जब दरका हुआ भरोसा किरच किरच टूट जाये
कि जब नामुमकिन-सा कोई स्वप्न साकार दिख जाये
कि जब संघर्ष की गाथा से दर-औ-दीवारें पट जाये
कि जब जागें युवा ऐसे, जैसे नींद खुद बिस्तरों से खींचे
कि जब भागें सभी ऐसे, जैसे यम पडा हो पीछे
तब मेरी कलम ने विरह की आंच नहीं लिखी
आज स्याही में मन की कोई प्यास नहीं लिखी
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sarthak abhivyakti vartman paristhitiyon me .aabhar
ReplyDeleteBLOG PAHELI NO.1
awesome moni
ReplyDeleteबहुत सार्थक रचना ..
ReplyDeleteAccording to the present scenario nice post.
ReplyDeleteआज मेरी कलम ने नम आंख नहीं लिखी
ReplyDeleteआज स्याही में कोई याद नहीं लिखी
आज उलझनों से पन्ने नहीं भरे
आज लेखनी ने नहीं किये ज़ख़्म हरे
बहुत खूब दिल को हिला देने वाली लेख......
यहाँ भी जरुर आये आपका स्वागत है....
MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
आज मेरी कलम ने नम आंख नहीं लिखी
ReplyDeleteआज स्याही में कोई याद नहीं लिखी
आज उलझनों से पन्ने नहीं भरे
आज लेखनी ने नहीं किये ज़ख़्म हरे ............
wah! kya baat hai monali....lajwaab...
तब मेरी कलम ने विरह की आंच नहीं लिखी
ReplyDeleteआज स्याही में मन की कोई प्यास नहीं लिखी
लगता है आजकल सभी कलम ने अपनी दिशा को एक नया मोड़ दे दिया है आजकल वो खुद के बारे में कम और दूसरों का ख्याल रखना सिखने लगी है :)
बहुत सुन्दर रचना |
bahut prabhavi aur samsaamyik rachna.
ReplyDeletebhaut hi saargarbhit post....
ReplyDeleteवाह वाह........क्या खूब कही है..........बधाई...
ReplyDeleteकुछ ना लिखने से लिख देना बेहतर है.....
चुपचाप बैठ मत कह देना बेहतर है.....
धीमे धीमे मृदु मधु विष पीते मत जाना...
समय के रहते जग जाना बेहतर है....
बहुत सार्थक ही पोस्ट
ReplyDeleteआज मेरी कलम ने नम आंख नहीं लिखी
आज स्याही में कोई याद नहीं लिखी
आज उलझनों से पन्ने नहीं भरे
आज लेखनी ने नहीं किये ज़ख़्म हरे
अच्छा लगता है कई बार कुछ अलग करना और अपने आपको बदलते हुए देखना या बदलाव का एक हिस्सा बनना
आपके प्रेरणादाई जज्बातों को नमन
ReplyDeleteआपकी लेखनी को नमन जिसने इन जज्बातों
को सुन्दर ढंग से उकेरा.
आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए दिल से आभार.
आपका फालोअर बन रहा हूँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
बहुत बहुत स्वागत है आपका.