भोर की पहली किरण से गोधूलि की सांझ तक...
पानी की शीतलता से अग्नि की आंच तक...
मिथ्या की संतुष्टि से सत्य की प्यास तक...
विछोह की पीडा से मिलने की आस तक...
जीवन के प्रारम्भ से म्रत्यु की अंतिम सांस तक...
मैं खुद को तेरी हंसी के उजले सवेरे में देखा करती हूं
मैं खुद को तेरे कल के बसेरे में देखा करती हूं
हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
ReplyDeleteकुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....
कुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।
ReplyDeleteदो दिलों के एक हो जाने की सुंदर कल्पना।
ReplyDeletevaah kya baat hai. sunder bhaav.
ReplyDeleteवाह क्या लिखा है बेहतरीन...मज़ा आ गया..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ... दिल को छुं गई !
ReplyDeleteWo sab to theek hai jee..........
ReplyDeleteBut eyes are closed!!!!!
Ashish
मैं खुद को तेरी हंसी के उजले सवेरे में देखा करती हूं...
ReplyDeleteमनभावन.
behadh khoobsurat....hansi ke ujaale..wow
ReplyDeleteप्रारब्ध का मतलब भाग्य नहीं होता ? (!)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबेहतरीन .. बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअच्छा है खुली आँखों से देखा ये स्वप्न. बंद आँखों के सपनो के सच होने का सपना सपना ही रह जाता है
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति !भाव उत्तम हैं, आनन्द आया !
ReplyDeleteबस "प्रारब्ध" शब्द को मृत्यु से जोड़ने को लेकर कुछ शंका है… उपयोग में कुछ गलत नही पर बाकि सभी पन्क्तियों के परिपेक्ष्य में प्रारब्ध और मृत्यु में तालमेल नहि बैठा पा रहा हूँ !
प्रेम के सारे तत्व मौजूद है आपकी नज़्म में .....!!
ReplyDelete'मिथ्या की संतुष्टि से सत्य की प्यास तक...'
ReplyDeleteबहुत उम्दा ...
गत माह आपने हौसला बढाया था......एक और रचना हाज़िर है ...कृपया मार्गदर्शन करें ..
http://pradeep-splendor.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
nazar paini hai ...prem ne kar di hai ..pahli baar dekh raha hun .."prem andha nahi kar raha hai " balki raushni de raha hai .... achhe ehsas hain ... keep writing...
ReplyDeleteThnk u ol.. n m sorry.. i used 'PRARABDH' instead of 'PRARAMBH'.. thnx to those who told me ma mistake..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता है। बधाई।
ReplyDeleteमैं खुद को तेरी हंसी के उजले सवेरे में देखा करती हूं...
ReplyDeleteशुक्रिया !
एक बेहतर जज़्बात को पैरहन पहनाने के लिए ।
ख़ुदा करे कि ये दीद का सिलसिला क़ायम रहे !
मिथ्या की संतुष्टि से सत्य की प्यास तक...
ReplyDeleteमैं खुद को तेरी हंसी के उजले सवेरे में देखा करती हूं
Kya baat hai!!...jeevan ki philosophy ..
बबुत खूब ... कोमल प्रेम क़ि निश्चल अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteयहाँ से गुजर रहा था तो सोचा आपको याद दिला दूं कि आप लिखा करती हैं शायद भूल गयी हैं....:) आपके पोस्ट के इंतज़ार में...
ReplyDeletethat is really beautiful ...liked it :)
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