दर्द की सच्चाई पर चढाती हूं सच का मुलम्मा
पावन नहीं पतिता हूं मैं...
छू कर पल दो पल को ज़िन्दगी तुम्हारी,
आगे निकल जाऊंगी...
ठहरा पानी नहीं, सरिता हूं मैं...
मेरा आना आज हंसी और मेरी याद कल आंसू देगी
और उस पर भी है ये दावा मेरा...
ग़ैर नहीं, वनिता हूं मैं...
बहुत सही...
ReplyDeleteशब्दों की जादुगरी नहीं कोमल मन की निर्मल अभिव्यक्ति। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteयोगदान!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!
bahut badhiya kavita.
ReplyDeleteसच का मुल्लमा चढाना ही तो दुष्कर काम है ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletewahwa.....badhai swikaren....
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति....आभार..
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना के लिये बधाई !
ReplyDeleteMonali...........Didi
ReplyDeleteBeautiful as always.
It is pleasure reading your poems.
मोनाली जी बस एक सवाल इतनी दर्द भरी अभिव्यक्ति क्यों की आपने।
ReplyDeleteऔर खुद को पतिता कहने की बात भी क्यों आई।
आपके प्रोफाइल फोटो में संभवत: आपकी गोद में आपकी बिटिया है। इस फोटो को देखकर मैं कहता हूं
आप निश्िचत ही
कविता हैं
एक पावन वनिता हैं
दो पल के जिसके स्पर्श से
जिन्दगी अमृत हो जाए
वह जीवन सरिता हैं।
बहुत बहुत शुभकामनाएं
छोटी रचना है परन्तु बहुत सुन्दर रचना है !!
ReplyDeleteआप ऐसे हे लिखती है और हिंदी साहितीय को जीवित रखे !!
भावों को सुन्दर शव्द दिया है आपने..............
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
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ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना...
ReplyDeleteaapki kalam mein jadoo hai.. :)
मेरे ब्लॉग पर मेरी नयी कविता संघर्ष
@Sangita ji, Manoj ji, Udan Tashtari ji,Arvind ji, Yogendra ji, Kailash ji,Upendra ji, Shekhar ji... THNK YOU..
ReplyDelete@Lucky.. Its nice to c ur lovely comment n ur attempt to write it in Hindi..
@Sanjay.. You always encourage me to do btr.. thnx
@Rajesh ji... m obliged for ur concern, positive words n love lines u wrote above.. aur ye meri bhatiji hai,,,jahaan tak meri bitiya ki baat h to my papa is stl workin hard to find a suitable match for me.. :)
मोनाली जी,
ReplyDeleteदर्द को दर्द की तरह महसूस करना ही सबसे अच्छी कविता हो सकती है। और वो सारा दर्द महसूस होता है शब्दों के माध्यम से अपने अंतर गुजरते हुये।
यह कविता अपने पाठक से पीड़ा बाँटती हुई आगे बढ़ती है.....
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
ma'am
ReplyDeleteif ur free so visit my blog and send ur comments
my blog name is www.onlylove-love.blogspot.com
बहुत ही सुंदर कविता।
ReplyDeletehttp://sudhirraghav.blogspot.com/
Lovely lines !
ReplyDeleteकवियत्री नही ...... कवयित्री
ReplyDeleteThnk u Sharad ji... I've edited it... :)
ReplyDeleteVery Impressive!
ReplyDeleteआप सभी को हम सब की ओर से नवरात्र की ढेर सारी शुभ कामनाएं.
beautiful thought ... but not as beautiful as that little angel in ur arms... god bless her..
ReplyDeletebahut khubsurat hai rachna..bhavpurn..koi samjhe to bahut badi baat hai....
ReplyDeleteकविता को पढ़ते हुए लगता है कि प्यार वाकई इतना अधिकार रखता है. वह हर तरफ से घेरता हुआ आपको लाजवाब कर देता है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है,मोनाली जी.
ReplyDeleteछू कर पल दो पल को ज़िन्दगी तुम्हारी,
ReplyDeleteआगे निकल जाऊंगी...
ठहरा पानी नहीं, सरिता हूं मैं...
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
बहुत अच्छी प्रस्तुति सुन्दर कविता
ReplyDeleteगहरी और सुंदर मुकम्मल प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक !
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ReplyDeletepainful...still beautiful
ReplyDeleteयहाँ ठहरा हुआ तो कोई भी नहीं,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है :)
सार्थक लेखन के लिये आभार एवं “उम्र कैदी” की ओर से शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteजीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव भी जीते हैं, लेकिन इस मसाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये यह मानव जीवन अभिशाप बन जाता है। आज मैं यह सब झेल रहा हूँ। जब तक मुझ जैसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यही बडा कारण है। भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस षडयन्त्र का शिकार हो सकता है!
अत: यदि आपके पास केवल दो मिनट का समय हो तो कृपया मुझ उम्र-कैदी का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आप के अनुभवों से मुझे कोई मार्ग या दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये।
http://umraquaidi.blogspot.com/
आपका शुभचिन्तक
“उम्र कैदी”
waah monali ji.....aapne to baandh liya :)
ReplyDeleteदर्द की सच्चाई पर चढाती हूं सच का मुलम्मा...
ReplyDeleteऔर जब
सरिता हैं ... तो
हरगिज़ हरगिज़ पतिता नहीं हैं
पावन लफ्ज़ ,,, पावन काव्य . . .
Sach kahaa Kavitrii nahi KAVITA hoon MAi........
ReplyDeletebeautiful poem!
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