
भोर की पहली किरण से गोधूलि की सांझ तक...
पानी की शीतलता से अग्नि की आंच तक...
मिथ्या की संतुष्टि से सत्य की प्यास तक...
विछोह की पीडा से मिलने की आस तक...
जीवन के प्रारम्भ से म्रत्यु की अंतिम सांस तक...
मैं खुद को तेरी हंसी के उजले सवेरे में देखा करती हूं
मैं खुद को तेरे कल के बसेरे में देखा करती हूं