पिता...
सबृ और सख्ती को घोल कर
पिला देना चाहता है
पिता...
डांट और नरमी को मिला कर
पहना देना चाहता है
पिता...
फिकर और गुस्से को बुन कर
ओढा देना चाहता है
पिता...
प्यार और चिन्ता को फेंट कर
चटा देना चाहता है
पिता...
भरोसे और नज़र अंदाज़ी को छौंक कर
खिला देना चाहता है
पिता...
सीख और चोट से रगङ कर
चमका देना चाहता है
पिता...
मरहम और तीखे शब्दों से घिस कर
संवार देना चाहता है
पिता...
गोद और फटकार में पिरो कर
सजा देना चाहता है
पिता केवल पिता नहीं, वो मां भी है
पिता... सबृ है संयम भी
ज़ख्म है मरहम भी
अात्मा है तन-मन भी
हंसी है अनबन भी
पिता...
सङकों पर छोङ देता है
...कि तुम रास्ते ढूंढ पाओ
पिता...
मुंह पर दरवाज़ा फेर देता है
...की तुम घर बना पाओ
पिता...
चौखटों में जकङ देता है
...कि तुम अपनी ज़िद की कीमत समझ पाओ
पिता...
तुम्हारी कमियों को उघाङ देता है
... कि तुम कहीं अधूरे ना रह जाओ
पिता...
तीखे शब्दों से छील देता है
... कि तुम जिंदगी की हर चोट से उभर पाओ
पिता है तो तुम हो
खेल है खिलौने हैं
सुरक्षा है सपने हैं
पिता मां जितने ही अपने हैं
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (17-01-2015) को "सत्तर साला राजनीति के दंश" (चर्चा - 1861)7 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत दुन्दर
ReplyDeleteसूर्य पर्व -मकर संक्रांति
संत -नेता उवाच !
पिता
ReplyDeleteकर्पूर के तरह
होता है
पिता का होना...
प्रत्यक्ष न भी हो
तो करवाता अपने होने का एहसास
हमेशा....
पिता है तो तुम हो
ReplyDeleteखेल है खिलौने हैं
सुरक्षा है सपने हैं
पिता मां जितने ही अपने हैं
हर लफ्ज़ एहसासों में भींगे हुए. सुन्दर रचना....!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत भावनापूर्ण ............वाह !
ReplyDelete[सब तो सामान हैं पिताजी के II
कितने एहसान हैं पिताजी के II
हमपे टी-शर्ट शानदार मगर ,
छन्ने बनियान हैं पिताजी के II
चाहते हैं जो वो बनूँ कैसे,
खूब अरमान हैं पिताजी के II
चुप्पियाँ भी हमारी सुन लेते,
दिल में दो कान हैं पिताजी के II
मर्मबेधी अचूक नुस्खों में ,
मौन के बान हैं पिताजी के II
गाय को रोटी,चींटी को आटा,
ऐसे कुछ दान हैं पिताजी के II ]
ब्रह्मा;विष्णु;महेश देव नहीं !
तीन भगवान हैं पिताजी के II
-डॉ.हीरालाल प्रजापति
http://www.drhiralalprajapati.com/2013/01/7.html
मन में सीधे सीधे उतर जाते हैं सब शब्द ...
ReplyDeleteकमाल की भावपूर्ण रचना ...