तमाम शाम सोचा कि फकत एक रात की बात है
फिर सुबह मुझे भी चल देना है इक राह पकङ कर
हिसाब लगाया घण्टों-मिनटों और निबटाने को पङे तमाम कामों का
ठीक बारह घण्टे और तीस मिनट बिताने थे तुम्हारे बिना इस घर में
जो मुझे बता गये कि वक्त फकत घङी की सुइयों का खेल नहीं है...
वक्त वो तोहफा है जिसे तुम घर लौटते हुए डाल लाते हो जेब में
वक्त वो मरहम है जिसे तुम हताशा वाले दिनों में मल देते हो मेरे माथे पर
वक्त वो जज़्बा है जिसे मेरे गिर्द लपेट देते हो तुम ठण्डी रातों में
वक्त वो गोटी है जिसे कैरम के इस बोर्ड पर बिखेर देते हो तुम बोझिल शामों में
और...
बक्त वो बोझ भी है जिसे उठाए फिलवक्त मेरी पीठ दुख चुकी है
वक्त वो उङी हुई नींद भी है जो रेंग रही है मेरी उंगलियों में
वक्त मेरा और तुम्हारा साझा खाता है...
जो अकेले संभाले नहीं संभलता...
फिर सुबह मुझे भी चल देना है इक राह पकङ कर
हिसाब लगाया घण्टों-मिनटों और निबटाने को पङे तमाम कामों का
ठीक बारह घण्टे और तीस मिनट बिताने थे तुम्हारे बिना इस घर में
जो मुझे बता गये कि वक्त फकत घङी की सुइयों का खेल नहीं है...
वक्त वो तोहफा है जिसे तुम घर लौटते हुए डाल लाते हो जेब में
वक्त वो मरहम है जिसे तुम हताशा वाले दिनों में मल देते हो मेरे माथे पर
वक्त वो जज़्बा है जिसे मेरे गिर्द लपेट देते हो तुम ठण्डी रातों में
वक्त वो गोटी है जिसे कैरम के इस बोर्ड पर बिखेर देते हो तुम बोझिल शामों में
और...
बक्त वो बोझ भी है जिसे उठाए फिलवक्त मेरी पीठ दुख चुकी है
वक्त वो उङी हुई नींद भी है जो रेंग रही है मेरी उंगलियों में
जो अकेले संभाले नहीं संभलता...
अपने विचारों को खूबसूरत कविता का रूप दिया है आपने!
ReplyDeleteकल 23/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
वक्त से बढ़कर कोई नहीं ..उसके आगे कोई नहीं ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
बढ़िया
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteपधारें। . www.knightofroyalsociety.blogspot.com पे