ये कविता कुछ साल पहले लिखी थी मगर हालातों की बात करें तो आज ज़्यादा प्रासंगिक लगती है...इसके लिये प्रशंसा की उम्मीद खुद से बेईमानी होगी...बस share करना चाहती हूं..
प्रश्न???
हर दिन एक नये रूप में दिख जाता है
मथता है मेरे मस्तिष्क को...
इसको हल करना जटिल है
क्योंकि इसकी सोच कुटिल है
मेरी सोच को विस्तार देना इसका उद्देश्य नहीं
बस मुझे हरा देना चाहता है
मेरे होठों से छीन कर हंसी..मुझे रुला देना चाहता है
और इसलिये हर रोज़ विकराल रूप धर कर आता है..
कसता है जाल मेरी खुशियों के इर्द गिर्द..
और फिर कसता जात है इस जाल को तब तक्...
जब तक मेरी हंसी दम ना तोड दे
यूं तो मैंने इसे हराया है कई बार
मगर ये बात अब पुरानी है
ऐस तब होता थ जब मेरे साथ एक कुनबा औ कुछ दोस्त थे
जब मैं बिना दरे इन प्रश्नों से टकरा जाती थी
क्योंकि,
विश्वास था कि ग़र गिरी भी तो संभाल लेंगे वो
लेकिन्..अब ऐसा नहीं है
रोज़ एक नया प्रश्न मुझे हरा देता है
और मैं भी शायद हारने की आदि हो गई हूं
रोज़ हारती हूं...
टूटती हूं...
अब मैं डर की सहेली हूं..
कल तक जो मेरा संबल थे.. आज उन्हीं के कारण अकेली हूं
वाह ... क्या बात है ... बेहद खूबसूरत कविता है ...सच्चे दोस्त मिलना बेहद मुश्किल है ... उम्दा ...
ReplyDeletehaarna jeetna to jeevan ki prakriya hai ... par sachhe dost sambhaal lete hain haarne par ,...
ReplyDeleteकसता जात है इस जाल को तब तक्...
ReplyDeleteजब तक मेरी हंसी दम ना तोड दे
अंतर्द्वन्द और उहापोह ..
सुन्दर रचना .. भावों को अभिव्यक्त करने में सर्वथा समर्थ
यूं तो मैंने इसे हराया है कई बार
ReplyDeleteमगर ये बात अब पुरानी है
ऐस तब होता थ जब मेरे साथ एक कुनबा औ कुछ दोस्त थे
जब मैं बिना दरे इन प्रश्नों से टकरा जाती थी
क्योंकि,
विश्वास था कि ग़र गिरी भी तो संभाल लेंगे वो
लेकिन्..अब ऐसा नहीं है
अपनों से बहुत सहारा मिलता है बड़ा ही असहज महसूस करता है आदमी जब मुश्किल घड़ी में साथ में कोई अपना ना हो..हिम्मत टूटने का डर रहता ...बेहद भावपूर्ण रचना लिखी है आपने खास कर उक्त लाइनें तो बेहतरीन बन पड़ी है...सशक्त रचना के लिए धन्यवाद स्वीकारें
बहुत सुन्दर कविता है ... कुछ साल पहले भी आप बहुत अच्छी लिखती थी ... मन के भावों को सुन्दर तरीके से व्यक्त की है
ReplyDeleteप्रश्नों से जुझना ही ताकत देता है। उसे आप हार मत कहिए।
ReplyDeleteye prashn sirf aap se hi nahin takrate.... idhar bhi aise hi prashn hain.. aur ham akele..
ReplyDeleteभले ही कभी लिखी हो... है तो प्रशंसा के लायक. बहुत खूब.. बधाई
ReplyDeletebehad sunder......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteप्रश्नों का जवाब तो देना ही पड़ेगा मोनाली जी . क्यू की बिना इनको सुलझाये राह तो मुश्किल ही है . ऐसे ही पर्श्नो को दरवाजे की राह दिखाते रहो , फिर कुछ भी मुश्किल नहीं . तुम पहले भी अच्छा लिखती थी , अब तो कहने क्या .
ReplyDeletebehad khubsurat kavita..waah
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