Monday, May 17, 2010

दिव्य


समन्दर करता है गुमान
विशालता का है अभिमान
सोचता है ना जाने कितनों को देता हुं जीवन दान
ना इस बात से बेखबर, ना इस तथ्य से अनजान कि...
इस विशाल, विस्त्रत जीवनदायी देह का स्वामित्व यूं ही नहीं मिल गया खारे पानी के सागर को
ना जाने कितनी नदियों ने अपना अस्तित्व मिटा के भरा है इस गागर को
खुद को मिटा के, बिना कुछ पाने की आशा के...
भेद सब हटा के, बिना कुछ खोने की निराशा के...
प्रेम के वशीभूत सर्वस्व निछावर किया
पता है कि कुछ हासिल नहीं होग मगर खुद को सौंप दिया
जानती हैं कि निरुद्देश्य, निर्ध्येय होने का ताना ही मिलेगा
खुदी को मिटाने का कोई सिल खुशनुमा नहीं होगा
लेकिन...
वो प्रेम क्या जो गणना करे...
जो प्रीतम को पाने को मंत्रणा करे...
जो त्रष्णा या घ्रणा करे...

ये प्रेम तो बस खुद को मिटाना जानता है...
सब कुछ लुटा के किसी को हंसाना जानता है...
सरिता का ये प्रेम्, सागर और सूर्यकिरण के मिलन पर भी ईर्ष्या नहीं करेगा...
क्योंकि ये प्रीतम की हंसी में मुस्कुराना जानता है

9 comments:

  1. ....बहुत अच्छी रचना

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  2. do visit my blog...

    www.deepakjyoti.blogspot.com

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  3. नमस्कार॥

    खुद को बड़ा समझने ...

    अक्सर छोटे होते हैं...

    जो भी बड़े हैं दिल के ...

    नहीं कभी भी कहते हैं...



    सुन्दर कविता...

    दीपक शुक्ल...

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  4. बहुत ही बेहतरी प्रस्तुती प्रेम की व्यथा, प्रेम की कथा और समर्पण. मेरे विचारों से बिलकुल मेल खाता मेरे मन में बस जाता वाह!!!!!!!!!!!

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  5. बहुत कुछ कहती है ये उच्चस्तरीय रचना - हार्दिक बधाई और शुभ आशीष कि आपकी लेखनी नित नई ऊँचाइयाँ छुए.

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  6. aap likhti bahut achcha hai upar wale ne aapko behtareen ilm se nawaza hai lekin aapme thodi si attitude problem hai woh yeh ki aap hamare blogs par kabhi nahi aayi na koi comments ke zariye aapke hausala afzaai ki ummeed karte hai aap hamare blogs visit karte rahenge..
    http://aleemazmi.blogspot.com

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  7. प्रेम के वशीभूत सर्वस्व निछावर किया
    पता है कि कुछ हासिल नहीं होग मगर खुद को सौंप दिया
    जानती हैं कि निरुद्देश्य, निर्ध्येय होने का ताना ही मिलेगा
    खुदी को मिटाने का कोई सिल खुशनुमा नहीं होगा
    लेकिन...
    वो प्रेम क्या जो गणना करे...

    ये पंक्तिया कितनी सुंदर है ... वाह

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  8. aap to bahut hi achha likhti hain...
    aur aapke shabdon ke gyan ne kavita ko aur bhi achha bana diya hai....
    yun hi likhte raehein...
    mere blog par...
    तुम आओ तो चिराग रौशन हों.......
    regards
    http://i555.blogspot.com/

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  9. bahut badhiya kavita.ye prem to bas khud ko mitana janta hai...vah.

    krantidut.blogspot.com

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