Friday, February 5, 2010
पगलिया उवाच्!!!
पिया तोरा जादू मोरे सिर चढ बोले
तोरी बातें सुन मन इत उत डोले
ना सूझे मोहे का है सच और का है झूठ
जो तू कहे सूरज में नाहीं गरमी तो सूरज से जाऊं रूठ
हंसती हैं मोपे सखी सहेली सारी
मोहे छेडें, सतावे और खावें मोरी गाली
पिया इनकी नजर में तू मत अइयो
इनकी गली में सजन तू मत जइयो
जे मुई तोहे नजराय देंगी
मोहक हंसी कूं नजर लगाय देंगी
तोरी खुसिअन पे जाऊं मैं वारी वारी
तोरी हंसी मोहे सब जग तें प्यारी
जो तू हो उदास के नदिया है सूखी जाको पानी है खतम
सच जान पिया जाहे भरन के करूंगी जतन
सब कहें हैं के जे बौरा गयी है
प्रेम धुन रटत है...पगला गयी है
मोहे तो इन लोगन पे हंसी बडी आवे है
जे सब बातें मोरा मन बहलावें है
मूढ नहीं जानेंगे प्रीत का होवे है
का है हार और जीत का होवे है
कोई इन्हें समझावे... कोई तो जे बतलावे...
मैने करौ है सौदा खरा खरा
कोई व्यौपारी परखे तो जाने जामे लाभ बडा
के अब मोहे अपने जतन नाहीं करने
हंसने और जीने के परयत्न नाहीं करने
तोरी खुशी मोहे हंसी दे जावेगी
तोरी नींद मोहे रतिया सुलावेगी
तू जीमेगो मेरी भूख मिट जावेगी
ऐसो सौदा कोई लाला का करेगो
सोची बूझी ऐसी कोई चाल का चलेगो
मोरी समझ जे जग नाहीं समझेगो
प्रीत के खेल के नियम सारे उल्टे हैं
सुलझाय सो है उलझे, उलझान वाले सुल्टे हैं
जे बातें बुद्धिहीन अभइ नाहीं जानेंगे
जब हम हो जैहें भव सागर से पार
हो के सजन प्रेम नैया पे सवार
तब जे पढेंगे... तब जे जानेंगे
सच कहती थी पगलिया... तब पहचानेंगे
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मूढ़ नही जानेंगे प्रीत का होवे .......
ReplyDeleteसच कहा प्रेण, प्रीत, नेह को समझना इतना आसान नही ....... ये वो दरिया है जो टायर कर पार जाना है ........
इश्क़ कीजे फिर समझिए ..... आशिकी क्या चीज़ है .....
बहुत अच्छी कविता ...
are....re....re.....ye kyaa......ajab ....gajab ....waah....waao.....lekin hamne is pagaliyaa ko pahchaan hi liyaa.....sach men ye to pagaliyaa hi hai....is pagakiya ko is pagli se magar bharpoor kavita ke liye sailyoot....!!
ReplyDeleteaap ki baaki post bhi badhiya hai aur ye pagalpan bhi pasand aaya :)
ReplyDeletebehtareen rachna
ReplyDeletebahut khoob jitni tareed ki jaaye utni kam hai ...aise hi likhte rahiye... lekin waqt mile to hamare blogs par apni tipanniyo se do chaar karein...
ReplyDeleteइतनी पोज़ेसिव्नेस !!! बाप रे बाप. भाषा अभ्य्वाक्ति सब कुछ लाजवाब
ReplyDeleteआपकी भाषा एवं शैली प्रशंसनीय है. आप बहुत अच्छा लिखती हैं.
ReplyDeleteSadiyaa gujri or hum barso ke jaage
ReplyDeleteSaaware tujh bin jiya lage to kaise lage
Tarse aatho pahar, barse mori akhiyaa
Puche kyu chhorh chale mohe saawariya
Kaise jodu main toote jo mann ke dhaage
Saaware tujh bin jiya lage to kaise lage
Rut badli or saawan me badra bhi chhaaya
Julmi biraha me mori jalti rahi suni kaaya
Baaki nahi jeevan me ab koi trishna aage
Saaware tujh bin jiya lage to kaise lage
Ye jug jab-jab tohe julmi,nirmohi kahata
Akhiyo se meri neer avirat bahata
Chinta me tori sari rain nain naa lage
Saaware tujh bin jiya lage to kaise lage
Sadiyaa gujri or hum barso ke jaage
Saaware tujh bin jiya lage to kaise lage
आपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeletebahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/