Tuesday, March 31, 2009

पाषाण पीड़ा

तुम नीर मैं पाषाण हुई
तुम चले गये कुछ पीर हुई
झर झर झरना-सा बनकर
तुम प्रतिदिन मुझसे मिलते रहे
तन पर भी छोडी छाप और मन में भी तुम घुलते रहे
अब छाप छोड मुझ पर अपनी
तुम आगे बढना चाह्ते हो
पाषाण कहें सब मुझको, पाषाणता तुम दिखलाते हो
कहते हो धार नयी कोई फिर तुमको छू जायेगी
कहते हो जल की नयी लहर फिर शीतलता दे जायेगी
गर मान भी लूं ये बात सभी,
क्या पीर कभी छुप पायेगी???
माना कोई नयी जलधारा फिर पत्थर पिघलायेगी
लेकिन जो छाप है तुमने छोडी,
क्या छाप कभी मिट पायेगी???
दुनिया तो बस पत्त्थर को ही पाषाण को ही पाषाण ह्र्दय बतलायेगी...
लेकिन जो सहा है पत्त्थर ने,
क्या कभी जान भी पायेगी???

काश...


काश कि दो लम्हे और मिल जाते तेरे साथ जीने के
काश कि दो लम्हे और मिल जाते जिन्दगी का जाम पीने के
अभी तो तरुणाई अंगडाई ली ही थी
काश कि दो लम्हे और मिल जाते इस उम्र मे रहने के
सागर, साहिल हवा और नदिया अभी तो महके ही हैं
काश कि दो लम्हे और मिल जाते इनकी महक लेने के
एक लम्बा अर्सा तेरे आगोश मे बिताने के बाद लगता है कि
काश कि दो लम्हे और मिल जाते इन बांहों में रहने के

Saturday, March 28, 2009

बोनसाई

बोनसाई का ये व्रक्ष
जो होना चाहता था विस्त्र्त्, असीम्, अनन्त
नापना चाहता था अन्तराल.. धरा और आकाश के बीच का
चाहता था फलो से लद जाना, नम्रता से झुक जाना
मस्त पुरवाई के साथ बौराना
पेड़ होने की सार्थकता पाना
लेकिन हसरतो की कलिया खो गई कला की आन्धी मे
हा आन्धी कला की...
लोग इसे कला ही कहते है
दूसरे के अस्तित्व को समेट कर प्रसिद्धि और प्रशन्सा के किले खड़े करना
किसी के असीम होने के स्वप्न को चारदीवारी मे बान्ध देना
और खुद को कलाकार का दर्जा देना
यही कला है?
लेकिन ये क्या?
ये बोनसाई तो हन्स रहा है
कहता है मै खुश हू
क्योकि आशा का दामन अभी छूटा नही है
उम्मीद से रिश्ता टूटा नही है
क्या हुआ जो मै यहा हू?
मेरे अन्श, मेरे बीज विस्त्र्त्, असीम्, अनन्त
नापेगे अन्तराल धरा और आकाश के बीच का...

Friday, March 27, 2009

अभिशाप





पडोसी घर से आ रहा था रुदन
अनिष्ट की आशन्का से कापता मेरा मन
किन्तु वहा जा कर तो दूसरा ही नजारा पाया
हुआ था चान्दनी सी एक कन्या का जन्म
कन्या जन्म् और ये रुदन
अब ना जाने क्यू कसैला हुआ मेरा मन
किसी तरह मन को समझाया, कदमो को आगे बढाया
देखा एक बच्ची की आखो से बरसता सावन
भाई की तरह किताबो को पाना चाह्ता थ उसका बचपन
यह दोगला रवैया देख होने लगि चिढन
लेकिन मेरे पैर भी कहा जमते है?
विचारो की तरह यहा वहा विचरण करते है...
फिर से मन के विचारो को समेटा
निराशा भरे तन को कुछ और आगे घसीटा
एक परिचिता के घर की तरफ बढे मेरे कदम
वही ले कर चल दी उदास मन्
दरवाजे से जो द्रश्य देखा उसे देख मन खिसिया रहा था
वहा उनकी सजी धजी कन्या का मोल लगाया जा रहा था
वर पक्ष सामान कि लम्बी सूची थमा रहा था
और उन्का मन शायद कन्या से मुक्ति पाना चाह रहा था

अचानक उन्होने मुझे देखा, उठ कर मेरा सत्कार किया
और वर पक्ष की सभी मान्गो को खुशी खुशी स्वीकार किया
कन्या अप्ना मोल लगता देख मुर्झा रही थी
उसकी आखो मे पानी की बूद मुझे साफ नजर आ रही थी
मैने फिर इस पुरुष प्रधान समाज को धिक्कारा
लेकिन कही न कही मेरे मन ने इस सच्चाई को स्वीकारा
कमी हमारी है जो खुद को नहि पहचाना
अपनी एकता की शक्ति को कभी ना जाना
काश केवल अपने घर को सभाला होता
तो एक घर ही ना जाने कितनी नारियो का आसरा होता

maa

"मा"...
ना जाने कितने लबो से रोझ यह शब्द निकलता होगा
तुम्हारे सामने भी इसे देख कर कोइ आकार उभरता होगा
माथे की गोल लाल बिन्दी के साथ कोई रुप सन्वरता होगा
मेरे सामने भी उनकी तस्वीर कुछ यू उभर आती है
मानो पानी मे अपनी ही परछाई नजर आती है
जानते हो कैसी है वो?
जानना चाहोगे कैसी है वो?
मेरे घर के हर काम से कुछ ऐसे जुड़ी है
मानो हर चीज का आधार वो, हर चीज की धुरी है
चेहरे पर ऐसी शान्ति नजर आती है कि देखते ही हर परेशानी उड़न छू हो जाती है
सन्यम और धैर्य की साकार प्रतिमूर्ति है वो
कुछ् यू उन्होने मेरी हर गल्ती को स्वीकार किया
मानो कोई कमी उनकी ही रही, उन्होने ही कुछ गलत किया
यू पाला है मुझको मानो कोई चित्रकारा रन्ग सजाती है
फिर भी जैसे अपनी कला से असन्तुष्ट हो
उसकी तूलिका प्रति पल चल्ती जाती है
रोज किसी नयी कमी को ढूढ कर उसे सुधारती है
नियम कायदे का ऋगार कर प्यार से सन्वारती है
अपनी कला को निखारती है
गर वो ये पढेगी तो की शब्द न चुप्पी तोडेगा
नैनो से ही भव झरेगे, वात्सल्य क झरना फूटेगा
त्तो ये शब्द तो उनसे दूर रहेगे, न कोई और कहेगा और ना हम कहेगे
मन की ये बात जताना बताना हमारे वश की बात नही
गर चाहे भी तो लब देगे साथ नही

Monday, March 16, 2009

एक सपना देखू बार बार
हम साथ साथ हम सन्ग सन्ग् मै रन्गी हू तेरे रन्ग रन्ग

छोटा सा एक घर बन लिया
रन्गो से उसको सज दिया
सामान भी सारा जमा दिया
हमने सन्ग इसको बसा लिया

किन्तु है ये बस स्वप्न स्वप्न् होना है इसको भग्न भग्न
फिर भी मै देखू बार बार्
एक सपना देखू बार बार
हम साथ साथ हम सन्ग सन्ग् मै रन्गी हू तेरे रन्ग रन्ग


तेरे साथ चलू परछाई बन
हर बुराई हर अच्छाई बन्
तू भी मेरा प्रतिबिम्ब बना
सन्ग सूर्य उगा सन्ग चन्द्र ढला

किन्तु हम नदिया के तीर तीर, ये प्रेम बस देगा पीर पीर
फिर भी मै देखू बार बार्
एक सपना देखू बार बार
हम साथ साथ हम सन्ग सन्ग् मै रन्गी हू तेरे रन्ग रन्ग

तेरे दुख मेरे ऑसू
हर सुख तेर मै भी बान्टू
हर बात तेरी हो मुझे पता
मै भी पाऊ सब तुझे बता

किन्तु ना होगा पूर्ण पूर्ण, ये स्वप्न तो होगा चूर्ण चूर्ण
फिर भी मै देखू बार बार्
एक सपना देखू बार बार
हम साथ साथ हम सन्ग सन्ग् मै रन्गी हू तेरे रन्ग रन्ग

Sunday, March 15, 2009

कभी कभी खामोशी ही काफी है सब कुछ कह जाने के लिए
और चन्द कदम ही बहुत है लाख फासले मिटाने के लिए
कभी कभी ऑसु भी जताते है खुशियॉ और
मुस्कुराह्ट भी काम आती है कोइ दुख जताने के लिए
जानती हू खोना पड़ता है बहुत कुछ, कभी कभी कुछ पाने के लिए
लेकिन मना नही पाती खुद को तेरे बिना जी पाने के लिए
खमोश रातो मे तेरे बारे मे सोचना ही खुशी से भर देता है
नही चाह्ती कोई रिश्ता बस लोगो को दिखाने के लिए

Heart vs Mind



When u were here wid me, i knew dat u r important
But now i realised dat 'no' u r nt important than me

when u were here wid me, i knew that i like u
But now i realised that 'no' i dont like u more than me


when u were here wid me, i knew that i luv to b wid u
but now i realised that i dont like to b wid ne1 else than me

when u were here with me, i knew that i was very much concerned about,
u, ur family n ur problems
but now i realised that i am nt concerned about ne1 else that me


And do u know who told me all this??
My MIND...
yeah, ppl say that mind is not that reliable..
but i know that my mind is more reliable than my HEART...

But with all this, i want to CONFESS something too...
My MIND is always thinking of u...
When my HEART is trying hard not to think of u even once
My MIND is constantly reminding me the time, i spent with u..
My MIND is constantly telling me that how loving and caring you were
My MIND keeps on saying that u are too adorable to forget..........

N now i m confused...
Whom to believe???
HEART or MIND???

My HEART only makes me cry for a certain time...
But this MIND which i think so reliable,
it let not me do anything at anytime.............