Friday, March 27, 2009

अभिशाप





पडोसी घर से आ रहा था रुदन
अनिष्ट की आशन्का से कापता मेरा मन
किन्तु वहा जा कर तो दूसरा ही नजारा पाया
हुआ था चान्दनी सी एक कन्या का जन्म
कन्या जन्म् और ये रुदन
अब ना जाने क्यू कसैला हुआ मेरा मन
किसी तरह मन को समझाया, कदमो को आगे बढाया
देखा एक बच्ची की आखो से बरसता सावन
भाई की तरह किताबो को पाना चाह्ता थ उसका बचपन
यह दोगला रवैया देख होने लगि चिढन
लेकिन मेरे पैर भी कहा जमते है?
विचारो की तरह यहा वहा विचरण करते है...
फिर से मन के विचारो को समेटा
निराशा भरे तन को कुछ और आगे घसीटा
एक परिचिता के घर की तरफ बढे मेरे कदम
वही ले कर चल दी उदास मन्
दरवाजे से जो द्रश्य देखा उसे देख मन खिसिया रहा था
वहा उनकी सजी धजी कन्या का मोल लगाया जा रहा था
वर पक्ष सामान कि लम्बी सूची थमा रहा था
और उन्का मन शायद कन्या से मुक्ति पाना चाह रहा था

अचानक उन्होने मुझे देखा, उठ कर मेरा सत्कार किया
और वर पक्ष की सभी मान्गो को खुशी खुशी स्वीकार किया
कन्या अप्ना मोल लगता देख मुर्झा रही थी
उसकी आखो मे पानी की बूद मुझे साफ नजर आ रही थी
मैने फिर इस पुरुष प्रधान समाज को धिक्कारा
लेकिन कही न कही मेरे मन ने इस सच्चाई को स्वीकारा
कमी हमारी है जो खुद को नहि पहचाना
अपनी एकता की शक्ति को कभी ना जाना
काश केवल अपने घर को सभाला होता
तो एक घर ही ना जाने कितनी नारियो का आसरा होता

13 comments:

  1. Abhi aur bhi apekshayeN haiN aapse.

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  2. blogjagat mein swaagat hai, chhotee see rachnaa bata rahee hai ki abhee bahut kuchh padhne ko milne wala hai likhtee rahein.

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  3. *मैं भी चाहता हूँ की हुस्न पे ग़ज़लें लिखूँ*
    *मैं भी चाहता हूँ की इश्क के नगमें गाऊं*
    *अपने ख्वाबों में में उतारूँ एक हसीं पैकर*
    *सुखन को अपने मरमरी लफ्जों से सजाऊँ ।*


    *लेकिन भूख के मारे, ज़र्द बेबस चेहरों पे*
    *निगाह टिकती है तो जोश काफूर हो जाता है*
    *हर तरफ हकीकत में क्या तसव्वुर में *
    *फकत रोटी का है सवाल उभर कर आता है ।*


    *ख़्याल आता है जेहन में उन दरवाजों का*
    *शर्म से जिनमें छिपे हैं जवान बदन *
    *जिनके **तन को ढके हैं हाथ भर की कतरन*
    *जिनके सीने में दफन हैं , अरमान कितने *
    *जिनकी **डोली नहीं उठी इस खातिर क्योंकि*
    *उनके माँ-बाप ने शराफत की कमाई है*
    *चूल्हा एक बार ही जला हो घर में लेकिन *
    *सिर्फ़ मेहनत की खायी है , मेहनत की खिलाई है । *


    *नज़र में घुमती है शक्ल उन मासूमों की *
    *ज़िन्दगी जिनकी अँधेरा , निगाह समंदर है ,*
    *वीरान साँसे , पीप से भरी धंसी आँखे*
    *फाकों का पेट में चलता हुआ खंज़र है ।*

    *माँ की छाती से चिपकने की उम्र है जिनकी*
    *हाथ फैलाये वाही राहों पे नज़र आते हैं ।*
    *शोभित जिन हाथों में होनी थी कलमें *
    *हाथ वही बोझ उठाते नज़र आते हैं ॥ *


    *राह में घूमते बेरोजगार नोजवानों को*
    *देखता हूँ तो कलेजा मुह चीख उठता है*
    *जिन्द्के दम से कल रोशन जहाँ होना था*
    *उन्हीं के सामने काला धुआं सा उठता है ।*


    *फ़िर कहो किस तरह हुस्न के नगमें गाऊं*
    *फ़िर कहो किस तरह इश्क ग़ज़लें लिखूं*
    *फ़िर कहो किस तरह अपने सुखन में*
    *मरमरी लफ्जों के वास्ते जगह रखूं ॥*


    *आज संसार में गम एक नहीं हजारों हैं*
    *आदमी हर दुःख पे तो आंसू नहीं बहा सकता ।*
    *लेकिन सच है की भूखे होंठ हँसेंगे सिर्फ़ रोटी से*
    *मीठे अल्फाजों से कोई मन बहला नही सकता । । *

    *Kavyadhara Team*
    *(For Kavi Deepak Sharma)*
    *http://www.kavideepaksharma.co.in*
    *http://kavideepaksharma.blogspot.com*
    *http://sharyardeepaksharma.blogspot.com*

    *( उपरोक्त नज़्म काव्य संकलन falakditpti से ली गई है )*
    *All right reserved with poet.Only for reading not for any commercial use.*

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  4. wah ji wah kya baat hai wah..sach me............namshkaar

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  5. Ache kavita hai.........
    purush pradhan samaaj mein yah aam baat hai..

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  6. अच्छी भावाव्यक्ति.....आभार

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  7. बहुत अच्छा मित्र . सतत लिखते रहो. शुभ कामनाएं

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  8. Aap sabhi ka meri hausla afzayi k liye dhanyavaad... aage bhi aise hi marg darshan karte rahein

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  9. nice poem

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  10. बहुत बढ़िया कविता है, बधाई स्वीकार करें।

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  11. Badhai ho,
    kabhi yahan bhi aayen
    http://jabhi.blogspot.com

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