उसे हर बात, मेरा हर राज़ बिना कहे मालूम हो जाता मगर वो मेरी सबसे अच्छी सहेली नहीं थी क्योंकि सहेलियां ढूंढी और बनाई जा सकती हैं. वो मेरी ख्वाहिशें, मेरे ख्वाब पूरे करना जानती थी मगर वो कभी भगवान नहीं बन सकी मेरे लिये क्योंकि ज़िन्दगी में ऐसे दौर भी आते हैं जब भगवान के होने पर संदेह हो सकता है. उसे उन रास्तों की कोई समझ नहीं थी जिन पर मैं चलना चाहती थी मगर वो अकेली थी जिसने उन रास्तों के सही नहीं बल्कि 'सुरक्षित भर' होने की दुआ मांगी थी.
उसने मेरे बचपन में किताबों और अखबारों के ढेर से मेरे लिये नन्हीं कहानियां बीनीं. उसने मुझे बताया कि गिरना बुरा नहीं, गिर कर ना उठ पाना बुरा है. उसने मुझे सूखे आटे को रोटियों में तब्दील करना सिखाया. उसने मुझे सिखाया कि चूल्हे पर सब्र पकाना आने से ज़्यादा मुश्किल कुछ नहीं. उसी ने बताया कि मुस्कान से बेहतर ऋंगार कोई नहीं. हालांकि मैं सीखी नहीं लेकिन उसने मुझे सिखाने की कोशिश की कि सुख आपके अंदर नहीं बल्कि आपके करीबियों की मुस्कुराहट मे है. उसने बताना चाहा कि मन मार कर मुस्कुराने से ज़्यादा मुश्किल और 'सुकून भरा' कुछ भी नहीं. उसने मुझे अदृश्य पर भरोसा करना और दृश्य को खुले दिमाग से टटोलना सिखाया.
बस वो मुझे ये सिखाना भूल गई कि अगर कभी वो रूठ जाये तो उसे क्या कह कर मनाया जाये... कि उसे कैसे बताया जाये कि वो मेरी ज़िन्दगी के सबसे खास लोगों में भी सबसे खास है.... कि जैसे चांद-तारों को रौशनी सूरज से मिलती है, उसे नहीं मालूम कि मेरी मुस्कुराहट उसके अधरों से खिलती है.
उसने मुझे तमाम रोगों के लिए घरेलू नुस्खे सिखाये, बस उसका दिल दुखाने से पैदा होने वाली ग्लानि को मिटाने का तरीका नहीं बताया.
उसने मुझे नहीं बताया कि उसके बिना कैसे रहा जाता है, कि रात भर जब नींद ना आये और कोई बालों में उंगलिया सहलाने को ना हो तो कैसे सोया जाये... जाने उसने नहीं सिखाया या मैंने नहीं सीखा मगर मुझे पता नहीं कि जब ऐसा कुछ महसूस हो तो उसे कैसे बताया जाये, कैसे जताया जाये कि मैं अब भी बडी नही हो पाई हूं...
उसने मेरे बचपन में किताबों और अखबारों के ढेर से मेरे लिये नन्हीं कहानियां बीनीं. उसने मुझे बताया कि गिरना बुरा नहीं, गिर कर ना उठ पाना बुरा है. उसने मुझे सूखे आटे को रोटियों में तब्दील करना सिखाया. उसने मुझे सिखाया कि चूल्हे पर सब्र पकाना आने से ज़्यादा मुश्किल कुछ नहीं. उसी ने बताया कि मुस्कान से बेहतर ऋंगार कोई नहीं. हालांकि मैं सीखी नहीं लेकिन उसने मुझे सिखाने की कोशिश की कि सुख आपके अंदर नहीं बल्कि आपके करीबियों की मुस्कुराहट मे है. उसने बताना चाहा कि मन मार कर मुस्कुराने से ज़्यादा मुश्किल और 'सुकून भरा' कुछ भी नहीं. उसने मुझे अदृश्य पर भरोसा करना और दृश्य को खुले दिमाग से टटोलना सिखाया.
बस वो मुझे ये सिखाना भूल गई कि अगर कभी वो रूठ जाये तो उसे क्या कह कर मनाया जाये... कि उसे कैसे बताया जाये कि वो मेरी ज़िन्दगी के सबसे खास लोगों में भी सबसे खास है.... कि जैसे चांद-तारों को रौशनी सूरज से मिलती है, उसे नहीं मालूम कि मेरी मुस्कुराहट उसके अधरों से खिलती है.
उसने मुझे तमाम रोगों के लिए घरेलू नुस्खे सिखाये, बस उसका दिल दुखाने से पैदा होने वाली ग्लानि को मिटाने का तरीका नहीं बताया.
उसने मुझे नहीं बताया कि उसके बिना कैसे रहा जाता है, कि रात भर जब नींद ना आये और कोई बालों में उंगलिया सहलाने को ना हो तो कैसे सोया जाये... जाने उसने नहीं सिखाया या मैंने नहीं सीखा मगर मुझे पता नहीं कि जब ऐसा कुछ महसूस हो तो उसे कैसे बताया जाये, कैसे जताया जाये कि मैं अब भी बडी नही हो पाई हूं...
क्या कहूँ मोनाली.....
ReplyDeleteसोचती हूँ ,बस रो लूँ कुछ देर.
अनु
दिल दुखने पर होने वाले दर्द की कोई दवा नहीं होती, बस ज़रुरत होती है तो केवल एक जादू की झप्पी की , कोई अपना दे तो बस पूंछो मत, और अगर माँ दे ये झप्पी तो बस समझो जन्नत मिल गयी !!!
ReplyDeleteमुझे उस समय बड़ा मान लिया गया जब मैं बड़ा होने के लिए बिलकुल तैयार नहीं था.... कोई नहीं होता... उनसे सब कुछ सीख लेने के बाद भी न ही कुछ पूरा हुआ और न ही कभी हो सकता है उनके साथ के बिना...
ReplyDeleteवाह , बहुत बढ़िया लिखा है मोनाली
ReplyDeletedevanshu ji se poorntah sahmat
ReplyDeleteसच्ची क्यों लगा उसे की /क्यों लगता है मुझे की मैं बड़ी हो गयी हूँ ....
ReplyDeleteमैंने भी लिखा था कुछ ऐसा ही " हम बड़े क्यों हो जाते हैं !!"
बेहद भावपूर्ण !
बेहतरीन भाव ...
ReplyDeleteये इमोशनल अत्याचार में डूबी कलम तेरी!
ReplyDeleteलिल्लाह! मेरी तो मम्मी है भी नहीं यार!
खुश रहिये!
ढ़
--
ए फीलिंग कॉल्ड.....
बहुत खुबसूरत ,लाजवाब अभियक्ति
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति...
मन मार कर मुस्कुराने से ज़्यादा मुश्किल और 'सुकून भरा' कुछ भी नहीं.
ReplyDeleteमोनाली क्या लिख देती हो तुम कि दिल छलनी हो जाय..
:) sach kaha Ashish jee ne ... emotional atyachar kar rahi ho:)
ReplyDeletepar ye bhi sach hai, ye dil to bachcha hai jee, bada hona hi nahi chahta..!!
blesssings..!
.
ReplyDelete# सब्र पकाना आने से ज़्यादा मुश्किल कुछ नहीं…
# मुस्कान से बेहतर ऋंगार कोई नहीं…
# सुख आपके अंदर नहीं बल्कि आपके करीबियों की मुस्कुराहट में है…
# मन मार कर मुस्कुराने से ज़्यादा मुश्किल और 'सुकून भरा' कुछ भी नहीं…
क्या कहूं इन वाक्यों के लिए …
जीवन जीने के सूत्र !
सुभाषित अनमोल वचन !
सिद्ध योगीजन की अमृतवाणी !
मोनाली जी
इतना मार्मिक लिखा है आपने कि आपकी छवि ज़ौहरी के साथ-साथ लाल-ओ-ग़ौहर के रूप में भी साकार होती महसूस हो रही है …
भावुक हो'कर भावनाओं की ऐसी भावपूर्ण प्रस्तुति … सहज नहीं
प्रणाम है आपकी आदरणीया माताजी को !
आप कहती हैं - कैसे जताया जाये कि मैं अब भी बडी नही हो पाई हूं...
मैं कहूंगा - आप कितनी बड़ी हो गई हैं !
लेखनी के साथ आपको भी नमन !!
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
nice
ReplyDeleteमाँ तो होती ही है,
ReplyDeleteज़न्नत की परछाई !!
लेकर जिससे छाँव उधारी,
रब ने स्वर्ग की रचना रचाई !!
न हो पाऊँ कभी इतनी बड़ी
जो तुझे देनी पड़े मुझे विदाई !!!
खुश रहिये हमेशा !!!
चार दिन ज़िन्दगी के .......
बस यूँ ही चलते जाना है !!
sachayi,bhav aur shabdo ki lajawab krti-****
ReplyDeleteआज पहली बार आपके पृष्ठ पर आना हुआ . बहुत सुखद एहसास रहा। जितना पढ़ा वो लाजवाब लगा , अभी बहुत कुछ पढना बाकी है।।बहुत बहुत बधाई आपको और साधुवाद आपकी कलम को।
ReplyDeleteनिःशब्द...
ReplyDeletekabhi kabhi sonchata hun.. Blogger kyun kuchh poston ko feverates choose karane ka option nahi deta ?..
ReplyDeleteTaki wo poston ki bheed me dab na jaye.
कमाल का शब्द संयोजन ...दिल निकाल कर रख दिया ..आभार
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