ना तुम्हें सहेजे रखने की कभी इच्छा ही हुई और ना कभी ये विश्वास ही प्रगाढ हो पाया कि तुम्हें अपना.. केवल अपना बना कर रख सकती हूं...
तुम मेरे लिए एक jigsaw puzzle की तरह थे जिसे मैंने टुकडों में पाया और हर टुकडा बडे जतन से सहेजा. और इसमें बुरा लगने जैसा भी कुछ नहीं था... तुम पर मुझसे पहले और निश्चित रूप से मुझसे ज़्यादा अधिकार रखने वाले ढेरों लोग थे.. मां, बाबूजी, दीदी, भैया जी और तुम्हें चाचा, मामा जैसे रिश्तों में बांधती हमारे घर के झिलमिल दीपों की वो दीपमाला जिससे सिर्फ वो घर नहीं.. मेरा जीवन भी जगमगाता था.
मां, बाबूजी का प्यार फलीभूत हुआ और मुझे एक टुकडा तुम मिल गये... देवर ननदों की चुहलबाज़ियां जब ठहाका बनी तो एक और टुकडा तुम मिले... जब किसी की चाची या मामी बन कर फिर से अपना बचपन जिया तो तुम्हें पूरा करता एक और टुकडा पा लिया...
तुम्हें यूं टुकडों में पाने की और बांटने की अब आदत हो गई है. तुमसे जुडा हर शख़्स इतना "तुम जैसा" लगता है कि सबके साथ ज़िन्दगी मानो गुंथ सी गई है. तुम्हें ज़्यादा से ज़्यादा पूरा करने और पाने के अपने स्वार्थ के चलते मैंने बहुत से रिश्ते जीते हैं और अब... हर रिश्ता सांस-सांस जीती हूं. मेरे हर सपने, हर प्रार्थना का हिस्सा बने तुम्हारे अपने मुझे ऐसे ही अपना मानते रहें.. बस यही एक ख्वाहिश है.
मैं नहीं जानती ये सबके साथ होता है या नहीं मगर मेरे सपनों का घर केवल तुमसे या मुझसे पूरा नहीं होता. और फिर दो दीवारों से तो कमरा भी नहीं बनता, घर क्या बनेगा?जब तक बडों के आशीर्वाद की छत औ छोटों के प्यार का धरातल नहीं हो, तब तक तो बिल्कुल नही... है ना???
bahut sahi kaha ...
ReplyDeleteमोनाली जी,
ReplyDeleteप्यार ,समर्पण और संवेदना में डूबी पंक्तियाँ मन को छू गयीं !
आभार
yahi bhaawna bani rahe yahi dua hai.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर !
ReplyDeleteदिल की अनुभूतियों को बड़ी सच्चाई से अभिव्यक्त किया है आपने.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सकारात्मक सोच है आपकी.
आपके लेख से आपके निर्मल मन के दर्शन हो रहे हैं.
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
too good,
ReplyDeletecongratulation for writing so touching,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सुन्दर पोस्ट बधाई मोनाली जी
ReplyDeletevery touching...
ReplyDeleteअति सुन्दर...
ReplyDeleteयही सोच तो घर को घर और परिवार को परिवार बनाती है जहां संबंधों की सुगंध से जीवन महकता रहता है |
Beautiful Post :)
ReplyDeleteBahut sundar tareeke aapane bhaw ko prakat kiya.
ReplyDeleteaabhar..
welcome to my blog...
Suresh Kumar
http://sureshilpi-ranjan.blospot.com
एक अनोखी कविता .. शब्दों में तैरता हुआ मन है और मन का द्वंद है .. आभार
ReplyDeleteविजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
बहुत सार्थक सुंदर लेखन ...
ReplyDeleteगहरी उतर गयीं आपकी बातें......
आभार.
बहुत खूबसूरत बात ... घर के लिए सारे टुकड़े जोडने ज़रूरी होते हैं
ReplyDeletebahut khoobsurat post.bahut achcha likha hai monaliji aapne.badhaai.
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही सुन्दर ।
ReplyDeletebhaavuk panktiyaan beshak....
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/