Monday, September 20, 2010
भारमुक्त
मेरे लबों पर उसकी कहानी क्यूं रहे?
रगों मे लावे की तरह बहते खून की रवानी क्यूं रहे?
कि जिसे कहती हूं मैं ज़िंदगी अपनी,
जब वो ही नहीं तो ज़िन्दगानी क्य़ूं रहे?
कि वो मेरे अपने हैं, उनसे खुद को छीन नहीं सकती
तोड दूंगी डोर ही रिश्तों की, भला ये रिश्ते बेमानी क्यूं रहे?
हक़ है उन्हें मुझे दर्द देने का, कि खुशियां लुटाईं हैं मुझ पर...
मगर मेरे दर्द के कर्ज़ से दबी उसकी जवानी क्यूं रहे?
मैं करूंगी हक़ अदा हर एक एहसान का..
हर उस शख़्स का जो मेरी ज़िंदगी से जुडा, जो मेरा मेहमान था...
मगर मेरे ग़म की जागीर उसके पास बतौर निशानी क्यूं रहे?
ये मेरे हिस्से के आंसू हैं, मेरे रिश्तों से मिले...
इन आंसुओं में उसका हिस्सा???
अब भला ये मेहरबानी क्यूं रहे?
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dil ko choo lene walo rachna...
ReplyDeletethanks Monali ji
सुंदर भाव...बढ़िया प्रस्तुति के लिए बधाई
ReplyDeleteआप का दिल से आभार...उम्मीद है आगे भी मेरी रचनाओं पर टिप्पणी करके मेरा मार्ग दशर्न व उत्साह वर्धन करते रहेंगे
ReplyDeleteइसमे रवानी तो है ...
ReplyDeletebahut hi sundar rachna...
ReplyDeleteबहुत ही भावुक रचना ...भावनाओं और मन की कशिश की बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...आभार ...
ReplyDeleteमन की व्यथा शब्दों के माध्यम से बखूबी सामने आ गयी है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
Monali ji,
ReplyDeletebahut sundar aur bhavpoorna hai apkee yah rachna .aise hee age bhee likhti rahiye.
Poonam
बहुत सुन्दर ! बहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteइसी बात से प्रेरित होकर अर्ज किया है..मुलाहिज़ा हो...
दोस्तों दुनिया में कोई नातवानी क्यों रहे?
हम हैं तुम हो तो कहो आधी कहानी क्यों रहे ?
सर्द आहों को कहो जाकर कहीं घर ढूंढ ले
हम अगर नादान हैं तो ये सयानी क्यों रहे ?
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार...जीवन के सच को भी पिरो दिया है बहुत बहुत बधाई...
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