Tuesday, November 17, 2009

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वो धार है पानी की
अपनी रौ में बहता हुआ
बेखबर...बेअसर...
मगर...हर जिन्दगी को छूता हुआ...

उसकी शीतल छुअन हर तपन से आजाद करती है...
उसकी कल-कल की आवाज मेरी खामोशी से बात करती है...

कभी लगता है जैसे मैंने अपने प्यार के बांध से उसे रोक लिया है
और कभी...लगता है कि मैं उसके साथ बह रही हूं...
उसकी हर बात अपने होठों से कह रही हूं...

और् सच कहूं तो मैं बह जाना चाहती हूं उसके साथ...
चाहती हूं कि वो थामे मेरा हाथ और कर ले खुद से करीब...

चाहे ये करीबी मुझे डूब के हासिल हो...
भले हो जाएं वापसी के सारे रास्ते बंद मगर वो मेरी मंजिल हो
कि जो...

धार है पानी की
अपनी रौ में बहता हुआ
बेखबर...बेअसर...
मगर...हर जिन्दगी को छूता हुआ...

8 comments:

  1. बहुत भावुक कर गयी आपकी ये कृति
    बधाई स्वीकारें इस सुंदर प्रस्तुती पर

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  2. chahti hu thaame woh mera haath...aur karle khud se kareeb....
    yeh line kabile gaur hai ....bahut hi umda shaira hai aap...bas aise hi apne hunar ko sabke saamne zahir karte rahiye ....am sure aap bahut aage tak jaayegi ....my best wishes always wid u
    aleem azmi

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  3. aap meherbaani karke hamare blogs par aaye aur apni tipanniyon se hamara sawaagat karein aapki ati kripa hogi
    उनसे नज़रें मिली और दिल चार हो गया
    यूँ लगने लगा हमको उनसे प्यार हो गया ।
    अब तो बेकरारी छाने लगी हर वक्त
    यह समझ कर की अब फिर सिलसिले मुलाकात हो
    यह सोच कर उनपर दिल निसार हो गया
    यूँ लगने लगा हमको उनसे प्यार हो गया ।
    यह सिर्फ़ मोहब्बतें अलफ़ाज़ है और कुछ नही
    यह सिर्फ़ धोखा है निगाहों का और कुछ नही
    कैसे मैं इस खेल में गिरिफ्तार हो गया
    यूँ लगने लगा हमको उनसे प्यार हो गया ।
    http://aleemazmi.blogspot.com/
    aleem azmi

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  4. monali tumhari kavita meri khud ki likhi lagti hai....dil ke kareeb.....

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  5. agn a touching poem....
    or kya likhu bs itna kh skti hu teri sari poems( specially recent ones), jo tune about me me likha hai uska full support or opposition sath sath krti hai

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  6. बहुत समय के बाद पुरसुकून ...
    ज़िन्दगी अजीब है पता नहीं क्या क्या आदतें लगा देती है, इंतजार बना हुआ था
    कहीं और भी अनुपस्थिति हैं आपकी, जो रौशन था वह टिमटिमाने लगा है.

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