Wednesday, September 9, 2009
तेरी खातिर...
मैं खुद से ही दूर होती गई
खुद ही जाने क्यूं खोती गई
तुझे जीतने की यूं ख्वहिश जगी
मैं तुझमे ही खुद को डुबोती गई
तेरी भोर से आखें मेरी खुली
तेरी रात से मेरी पलकें मुंदी
तेरी खुशी से लब खिल उठे
तेरे दर्द में ये नैना झरे
मैं तुझमें ही गुम होती गई
मैं खुद से ही दूर होती गई
मैं तेरे इशारों पर चलती रही
तुझको ठोकर लगी,मैं संभलती रही
अपनी खुशी तो ना देखी कभी
मैं तेरे लिये ही बिखरती रही
मैं तुझमें ही गुम होती गई
मैं खुद से ही दूर होती गई
सब पूछें क्या पाया, क्या खोया मैने?
किसकी खातिर हर सपना है धोया मैंने?
कुछ खो कर है पाया, पा कर कुछ खो दिया
बस तेरे लिये नहीं ग़म बोया मैंने
हर विरासत तेरी संभालने के लिये
मैं कंटकों से हंस के गुजरती गई
कर्तव्य की पगडण्डी पर चलते हुये
'मोनाली' हर पल न्यौछावर होती गई
तेरी इक प्यार भरी मुस्कान को
तेरी जुबां को और तेरे सम्मान को
मैं अपनी खुदी को ही खोती गई
मैं तुझमें ही गुम होती गई
मैं खुद से ही दूर होती गई
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bhawnaon ke udrek se nikali dil ke bheetar se gujarati hui kavita hai yah itani kam umra men itani sunder abhvyakti sarahaniya hai . mere blog oer aake tippani karane ka shukriya . .
ReplyDeletereally a touchng one.....
ReplyDeletehi monali......aapka comment padha...bahut khushi hui....aapke ek ek shabd me kuchh n kuchh gahraai thi..thanks for comment..
ReplyDeletebahut sunder kavita hai
ReplyDeleteमैं तुझमें ही गुम होती गई
मैं खुद से ही दूर होती गई
kya bat hai
ReplyDeletedil ko maza aa gaya
itna dard
monali ji i respect u a lot...i am inspired with urs lines....markandey.rai100@gmail.com
ReplyDeletemonali ji kya baat hai!
ReplyDeletenice poem even though i didn't understand all the words
ReplyDeleteHey Abhi...thnx n u may ask me whatever u didn't get...
ReplyDeletemonali ji,
ReplyDeleteaapko pahali baar padha hai....is rachna men mann ka dard bharpur jiya hai aapne....sundar abhivyakti.....
hey monali..hats off...kya likha hai!!
ReplyDeleteinferiority complex hone laga hai mujhe...:)
एक लम्बे अर्से बाद कोई फिरोजाबाद का मिला है...और वो भी इतना अच्छा लिखने वाला...
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखती हैं
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बस एक ही दुआ है खुद से दूर न हों .....रचना बहुत सुंदर लगी .....!!
ReplyDeletebahut hi achchhi tarah se shabdon ko sone me gada hai. badhai
ReplyDeletemain tere isharo pe chalti rahi...tujhko tthoker lagi main sambhalti rahi.....pyaar me kya khona kya pana...
ReplyDeletemonali ji
ReplyDeletenamaskar
main pahli baar aapke blog par aaya hoon
aapki saari rachnaaye padhi , jo man ko bahut choo gayi ..
ye waali poem sabse acchi hai
is post ke liye meri badhai sweekar kare..
dhanywad
vijay
www.poemofvijay.blogspot.com
wow... nice poem....
ReplyDeleteawesome....
thankz for giving me d link........