Monday, May 4, 2009

असमंजस


एक ख़्वाब जो देखा करती थी
एक बात जो सोचा करती थी
जिस्को मैं सपना कहती थी
सपने में जीती रहती थी

वो सपना अब सपना ना रहा
वो कुछ ऐसे अब पूरा हुआ
कि अब मुझको डर लगता है
मन मेरा उस से डरता है

जिनको मैंने सच माना था
वो सारे भ्रम अब टूट गये
जिनको मैंने भ्रम जाना था
वो सच बन कर यूं लूट गये

जाने ये कैसी बात हुयी
कैसे संग दिन के रात हुयी
मुस्कान में आंसू ऐसे मिले
बहती धारा में जैसे रेत चले

अब साथ मेरे कुछ भी ना रहा
मनमीत गया, मन भी ना रहा
सच भी ना रहा, भ्रम भी ना रहा
फिर भी हालात से लडती हूं

कल मेरा उज्जवल हो ना हो
मैं आज भी सप्ने बुनती हूं
हर आहट पर कान लगाये हूं
खुशियों की आवाजें सुनती हूं

रिक्ति


जो नहीं मिला तुझे मुझे उस्की तलाश है
जिन्दगी बिन तेरे बेरंग पलाश है
मैं ढूढ्ती,मैं पुकारती
मैं यहां वहां निहारती
तेरे साथ की मुझे अब भी प्यास है
जिन्दगी बिन तेरे बेरंग पलाश है

हर जगह, हर कहीं ढूढे मेरी नजर उसे
हां वही कि तू नहीं हासिल कर सका जिसे
हमारे उस घरौदे की मुझे अब भी आस है
जिन्दगी बिन तेरे बेरंग पलाश है