Saturday, January 28, 2012

तुम्हारी-मेरी बातें...


"बन गये दाल-चावल?" लडकी ने इस आस के साथ पूछा कि लडका हैरान हो कर पलट सवाल करेगा कि उसे कैसे पता हो गया कि आज वो खुद खाना बनाने वाला है? कि कैसे उसे सारी बातें बिना बताये मालूम हो जाती हैं.

लेकिन आज लडका अपनी ही धुन में है, बोले चले जा रहा है जबकि लडके को बातें बनाना एकदम नहीं आता और लडकी को बातों के सिवा कुछ और बनाना नहीं आता. लडकी उसे पा कर बहुत बहुत बहुत खुश है कि उसे यकीन है लडका उसे कभी बना नहीं सकता. लेकिन आज लडका उसे बोलने क मौका ही नहीं दे रहा. शायद उसकी संगत में इतना अर्सा बिताने के बाद लडके ने भी बोलना, भीड में खोना, खुली पलकों से सोना ...सब सीख लिया है. ये ख़याल आते ही लडकी हौले-से पलकें झुकाती है और सोचती है कि, काश! उसकी संगत के रंग पक्के हों और लडका उसके रंग में ताउम्र रंगा रहे.

इस बीच लड्का बहुत कुछ बोल गया है जो उसने सुना नहीं है मगर उसे बातों के सिरे पकड कर मन की गिरह खोलने का हुनर आता है. लडके को मालूम भी नहीं होता कि फोन लाइन के उस पार मुस्कुराती लडकी इस बीच अपने मन की दुनिया का एक चक्कर लगा कर भूले-बिसरे कई काम निबटा आई है.

काफी देर बाद भी जब उसका मनचाहा सवाल नहीं आता तो लडकी से रहा नहीं जाता.

"तुमने पूछा नहीं कि मुझे कैसे पता चला कि आज तुम दाल्-चावल बनाने वाले हो?"

लडका जानता है कि उसे ये बात लडके की मां से पता चली है. लेकिन ये वो जवाब नहीं जो लडकी के चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेर दे और लडके को उसकी हंसी के तडके वाली तीखी आवाज़ से बेहद प्यार है. इसलिये;

"अरे हां, ये तो मैंने सोचा ही नहीं. बोल ना... कैसे पता तुझे?"

लडकी को भी पता है कि लडका नासमझ होने का ढोंग भर कर रहा है मगर उसकी आवाज़ से आधे भरे मटके की तरह खुशी छलकी पड रही है.

"वही तो... सब खबर रखती हूं तुम्हारी. होने वाली बीवी हूं जी, कोई टाइमपास गर्लफ्रेंड नहीं."

"ह्म्म्म ... बच कर रहना पडेगा तुझसे तो"

"और कितना ही बच कर रहोगे लडके. ऐसे भी इतनी दूर हो कि बस आवाज़ भर ही नसीब हो पाती है."

जाने परली तरफ लडका मुस्कुराया है या नहीं मगर लडकी की आंखों से मानो हंसी झर रही है. सारा कमरा उसकी आंखों से रौशन और सारा घर उसकी हंसी से गुलज़ार है. और हंसी के झीने लबादे से ढंकी उसकी आवाज़ मानो उस शहर के ज़िन्दा होने की इकलौती वज़ह है और अकेला सुबूत भी.

"बता दे ना... कैसे पता चला तुझे?"
"तुम्हारे शहर की हवा ने हौले से मेरे शहर के बादल को बताया था और फिर जब रिमझिम बरसते बादल ने मुझे छुआ तो बस... उस छुअन भर से सब मालूम हो गया."

"हाय! बस ये बातें ना होती तो मैं दो-चार बरस और शादी के झंझटों से दूर रहता."

लडकी जानती है कि लडका कभी साफ-साफ शब्दों में उसकी तारीफ नहीं करेगा इस्लिये उसकी बातों को छान-फटक कर अपने लिये तारीफ के बोल बीन लाती है.

दोनों की हंसी धरती के ऊपर की सात परतों को पार कर के ऊपर वाले तक पहुंचती है और वो सुकून की गहरी सांस लेते हैं कि दुनिया में कोई तो उनके किसी फैसले से खुश है.

आंखों के सामने से गुज़रते बादल को हाथ से धकेल कर भगवान नीचे झांक कर देखते हैं कि उन दोनों की हंसी गहरे लाल रंग में तब्दील हो कर कई ज़िन्दगियों को छू कर गुज़र रही है. लडके-लडकी की तरह भगवान भी इत्मिनान से सोने की तैयारी में हैई कि उन्हें संतोष है जो उन्होंने इश्क़ और इश्क़ के हर दर्द को सह कर भी मुस्कुराते लोगों की क़ौम बनाई है.

इक मुस्कुराहट तो तुम भी deserve करते ही हो कि तुम उस कौम का हिस्सा जो हो... ः)

Saturday, January 7, 2012

...तू कहीं भी नहीं


तेरी बातों को हवा में उडा देने की फितरत भी मेरी थी
उन्हीं बातों को हवा से छीन लाने की आदत भी मेरी है

तेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बनने को रब से मिन्नत भी मेरी थी
तेरी यादों के भंवर से उबरने को धागों में मन्नत भी मेरी है

तेरे दिल में अपने लिये मुहब्बत की चाहत भी मेरी थी
तेरे ज़ेहन में खुद के लिये नफरत की हसरत भी मेरी है

तेरे ख़यालों तक को मार डालने की साजिश भी मेरी थी
तुझे ख़यालों में जिलाये रखने की ख्वाहिश भी मेरी है

इश्क़ की दीवारों से घिरी, सिर पटकती वो मूरत भी मेरी थी
ऊंचे किले के दरवाज़ों पर लिखी ये इबादत भी मेरी है

हूं 'मैं ही मैं' हर तरफ...
तेरा नाम-ओ-निशां तक नहीं

फिर भी खुद की तलाश का हर रास्ता ग़र तेरी गली से गुज़रे
तो.. अच्छी या बुरी, जैसी भी सही...

कल की ये हक़ीकत भी मेरी थी,
आज की ये किस्मत भी मेरी है...