Sunday, December 20, 2009
दिल्ली
थमा थमा लगता है ये शहर कभी कभी
हर पल भागता है, फिर भी लगे सूना
इसके शोर में भी सन्नाटा सुनाई दे
जमा जमा लगता है ये शहर कभी कभी
थमा थमा लगता है ये शहर कभी कभी
रिश्तों की क्दर तो इसने कभी नहीं की
हर चीज बनी खिलवाड्, हर चीज से दुश्मनी की
धुआं धुआं लगता है ये शहर कभी कभी
थमा थमा लगता है ये शहर कभी कभी
ये रंग बदलता है कई रूप ये धरता है
फिर भी न जाने क्यूं मुझे कुरूप ही दिखता है
सूना सूना लगता है ये श्ह्र कभी कभी
थमा थमा लगता है ये शहर कभी कभी
ये हंसी को है मारे, हर ग़म को संवारे
हर आदमी दूसरे का काम बिगाडे
फ़ना फ़ना लगता है ये शहर कभी कभी
थमा थमा लगता है ये शहर कभी कभी
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